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बजट 2022: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किन बातों पर होना चाहिए था फोकस?

पिछले साल, केंद्र ने पर्यावरण मंत्रालय (Environment Ministry) के बजट को घटाया था. 2021-2022 के लिए पर्यावरण मंत्रालय के बजट को 3100 करोड़ रुपये से घटाकर 2869.93 करोड़ रुपये कर दिया गया था. अब इस साल यह सवाल आता है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से निपटने के लिए किन बातों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए?

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बजट 2022: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किन बातों पर होना चाहिए था फोकस?

अगर विशेषज्ञों की मानें तो बजट 2022 में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के शमन पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की आस लगाई जा रही है. यह वास ग्लास्गो में COP26 शिखर सम्मेलन में हुए चर्चाओं को देखते हुए लगाई जा रही है. इसके साथ ही विशेषज्ञ बुनियादी ढांचे का विकास और रोजगार के स्त्रोत, कोरोना की पोस्ट रिकवरी के लिए मजबूत नींव बनाने का आग्रह कर रहें हैं.

नवंबर में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन – COP26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्लाइमेट इमरजेंसी (Climate Emergency) को कम करने के लिए पांच प्लेज और ‘पंचामृत’ की घोषणा की थी:

1. भारत वर्ष 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म (non-fossils) ऊर्जा क्षमता 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा.

2. भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से साल 2030 तक पूरा करेगा.

3. भारत अब से वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करेगा.

4. साल 2030 तक, भारत अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से कम कर देगा.

5. साल 2070 तक भारत ‘शुद्ध शून्य उत्सर्जन’ का लक्ष्य हासिल करेगा.

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हालांकि, पिछले साल केंद्र ने पर्यावरण मंत्रालय (Environment Ministry) के 2021-2022 के बजट में कटौती की थी. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पर्यावरण मंत्रालय के लिए 2,869.93 करोड़ रुपये किए, जो पहले 3,100 करोड़ रुपये से घटाकर किए गए थे.अब इस कटौती से क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान (CACP), नेशनल अडेप्टेशन फण्ड (NAF) और इंटेग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ़ वाइल्डलिफ़ हैबिटैट (IDWH) जैसी योजनाओं को बड़ी कटौती का सामना करना पड़ा.अब CCAP की ही बात ले लीजिए, CCAP के लिए कुल आवंटन 2020-2021 के बजट में 40 करोड़ रुपये से घटाकर नए वित्तीय वर्ष के लिए 30 करोड़ रुपये कर दिया गया था. CCAP एक सरकारी प्रोग्राम है जिसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और अनुकूल बनाने हेतु शुरू किया गया है.अब इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए और महामारी के तीसरे वर्ष के कारण वित्तीय बाधाओं के बावजूद, आने वाला इस साल के बजट से जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए सरकार की मंशा को व्यक्त करने की उम्मीद है.दिल्ली के एक पर्यावरण कार्यकर्ता ने यह बताया कि हालांकि, आसन्न जलवायु संकट के कारण अनुमानित प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव को देखते हुए बजट आवंटन कम हो सकता है.बजट 2019-20 में अपनी स्थापना के बाद से ‘कण्ट्रोल ऑफ़ पॉल्यूशन’ ने AN के आवंटन में वृद्धि देखी है. पिछले बजट में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 470 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.

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प्रदूषण के नियंत्रण के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/समितियों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता और जनवरी 2019 में शुरू किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) का वित्त पोषण शामिल है.ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ जलवायु प्रचारक अविनाश चंचल का कहना है कि “COP26 के बाद, आगामी बजट सत्र इस सरकार के लिए यह दिखाने का पहला अवसर होने जा रहा है कि वे क्लाइमेट के लिए किए गए वादों को पूरा करने हेतु गंभीर है भी या नहीं.”

हमें उम्मीद है कि सरकार बेवजह के उत्सर्जन को कम करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाएगी. देखा जाए तो भारत में हर राज्य, शहर,गांव किसी न किसी तरह के प्रदूषण का शिकार है और यह सिर्फ इंडस्ट्री से निकलने वाले धुएं के कारण ही हो रहा है. इसके कारण भारत में वायु प्रदूषण और मौसम में गंभीर बदलाव भी देखने को मिल रहा है. आपको बता दें कि पिछले साल केंद्र सरकार ने 42 शहरों में वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिए 2,217 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, लेकिन इस फंड का उपयोग कैसे किया गया और कहां किया गया, इस बारे में सार्वजनिक प्लेटफार्मों पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. पिछले साल एनसीएपी को ‘प्रदूषण नियंत्रण’ कार्यक्रम के तहत 470 करोड़ रुपये भी दिए गए थे.

अविनाश चंचल ने बताया कि ग्रीनपीस इंडिया की वार्षिक एयरपोकैलिप्स रिपोर्ट 2020 के अनुसार, 287 शहरों में से 231 शहरों में पीएम-10 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की लिमिट से ज्यादा निकला, जिसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों ( Central Pollution Control Board) के तहत निर्धारित किया गया था, जिसका अर्थ है कि ये सभी शहर / कस्बे गैर-प्राप्ति सूची के लिए संबंधित हैं.एनसीएपी में इन सभी प्रदूषित शहरों को शामिल करने की जरूरत दिखाई पड़ रही है. इसके लिए ‘प्रदूषण नियंत्रण’ से निपटने के लिए बढ़े हुए बजट आवंटन की आवश्यकता पड़ेगी. बजट में शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को मजबूत करने पर भी ज्यादा फोकस होना चाहिए. बड़े नवीकरणीय विकास परियोजनाओं के साथ, बजट को ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अतिरिक्त सहायता देनी चाहिए. अक्षय ऊर्जा का विकेन्द्रीकृत मॉडल न केवल हमें सार्वभौमिक तौर पर ऊर्जा पहुंच प्राप्त करने में मदद करेगा बल्कि यह जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा बनाने की जगह जलवायु संकट को कम करने में भी हमारी मदद करने की ताकत रखता है.सरकार को रूफटॉप सोलर और विकेन्द्रीकृत ऊर्जा समाधानों के अन्य रूपों का समर्थन करने की आवश्यकता है जो कोयला पर आधारित बिजली की मांग को कम करते हैं.

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भारत के अग्रणी पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों में से एक और इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (iFOREST) के अध्यक्ष और सीईओ चंद्र भूषण ने एनडीटीवी से कहा कि आगामी बजट 2022 में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लास्गो COP26 में जो कहा है उसका भी ध्यान रखना चाहिए.उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री ने COP26 में क्लाइमेट से जुड़े वादों के बजट को उस तरह से प्रतिबिंबित करना चाहिए जिस तरह से यह सरकार इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की योजना बना रही है. भले ही ये लक्ष्य 10 साल के लिए हैं, लेकिन इस आगामी बजट से उन्हें पूरा करने के लिए आवश्यक निवेश और योजना को प्रतिबिंबित करने की उम्मीद है.उन्होंने यह भी कहा कि, लगभग 6 साल पहले, जब स्वर्गीय अरुण जेटली वित्त मंत्री थे, तब जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि पर तर्क-वितर्क भी हुई थी. पिछले 6 वर्षों में हमने स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी देखा है. और इसलिए, हमें ज्यादा से ज्यादा संसाधनों की जरूरत है, हमें स्थानीय स्तर पर क्षमता निर्माण करने की जरूरत है. वित्त मंत्री को इन मुद्दों को देखने पर विचार करना चाहिए.उन्होंने आगे बताया कि कोयला कई सालों में आर्थिक मदद के बावजूद भी नहीं मिल पाएगा. साथ ही में दोबारा इस्तेमाल में आ जाने वाली चीजों के भी मूल्य में गिरावट देखी गई है. इसी को देखते हुए हमें जल्द ही कोयले की जगह किसी और चीज़ को रिप्लेस करना चाहिए.साल 2020 में, भारत ने विकसित की जाने वाली नई सौर परियोजनाओं के लिए रिकॉर्ड न्यूनतम (INR1.99 / kWh) सौर टैरिफ बोलियां भी देखी हैं.

हालांकि, Q2-2021 के अंत में 6.2GW की कुल स्थापना के साथ, 2022 तक भारत का 40GW का रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशन लक्ष्य पिछड़ रहा है लेकिन देश को निर्धारित किया हुआ लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इंस्टॉलेशन को गति देने की आवश्यकता है. केंद्र सरकार को विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए बजट बढ़ाना चाहिए साथ ही में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर काफी चर्चा भी इन शिखर सम्मेलन में हो रही हैं. सरकार को शहरों में अक्षय ऊर्जा से चलने वाली सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त बजट बनाना चाहिए. देखा जाए तो आप सब जानते हैं कि हम पहले से ही एक जलवायु संकट का सामना कर रहे हैं, यह जलवायु अनुकूलन योजना को लागू करने के लिए एक कुशल नीति पेश करने का सबसे जरूरी समय है जिसमें क्लाइमेट रेसिलिएंट जीविका, इंफ्रास्ट्रक्चर और सार्वजनिक परिवहन शामिल है.

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