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कोई पीछे नहीं रहेगा

प्राइड मंथ स्‍पेशल : NALSA के फैसले से लेकर ट्रांसजेंडर एक्‍ट – 2019 तक, ट्रांसजेंडर की सुरक्षा में भारत की स्थिति

भारत में ट्रांसजेंडर लोग वर्षों से समानता और अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. उनके अधिकारों की रक्षा और कल्याण के कानूनी प्रावधानों पर एक नजर, नीतियां लागू करने में कहां हैं कमियां

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प्राइड मंथ स्‍पेशल : NALSA के फैसले से लेकर ट्रांसजेंडर एक्‍ट - 2019 तक, ट्रांसजेंडर की सुरक्षा में भारत की स्थिति
भारत में ट्रांसजेंडर लोग दशकों से मुख्यधारा में जगह बनाने के लिए संघर्षरत हैं और पिछले 15 वर्षों से ये अपने कानूनी अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं

नई दिल्ली: ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को तकरीबन रोज ही जिस पीड़ा और आघात से गुजरना पड़ता है, समाज के आम लोगों को शायद ही इसका कोई एहसास हो. दशकों से इस समुदाय को सामाजिक तिरस्‍कार, अपमान और उपेक्षा का सामना करना पड़ा है और यह सिलसिला सार्वजनिक स्थानों, शिक्षा संस्थानों या अस्पतालों से लेकर तकरीबन हर जगह देखने को मिलता है. इसकी वजह है हमारे समाज में खुलेपन, समावेशी सोच, जागरूकता और अलग लैंगिक पहचान को स्वीकार करने के नजरिये की कमी होना. समाज की इस विफलता के कारण ही ट्रांसजेंडर लोगों को अक्सर तिरस्‍कार, धमकियों और यहां तक कि हमलों तक का भी सामना करना पड़ता है और ज्यादातर यह सब एकतरफा ही होता है.

भारत में ट्रांसजेंडर लोग दशकों से मुख्यधारा में जगह बनाने के लिए संघर्षरत हैं और पिछले 15 वर्षों से ये अपने कानूनी अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. वे अपने ऊपर पुरुष या महिला की लिंग पहचान थोपे जाने के बजाय ट्रांसजेंडर के रूप में अपनी एक अलग लैंगिक पहचान (जेंडर आईडेंटिटी) की कानूनी घोषणा की मांग कर रहे हैं. उनकी आवाज को 2014 में मान्यता मिली, जब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) का फैसला पारित किया. इस ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडर लोगों को ‘तीसरा लिंग’ घोषित किया गया और इस बात की पुष्टि की गई कि ट्रांसजेंडरों को भी भारत के अन्‍य लोगों की तरह ही संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकार प्राप्‍त होंगे. महिलाओं व पुरुषों की तरह ही यह अधिकार तीसरे लिंग के रूप में पहचान रखने वाले लोगों पर भी समान रूप से लागू होंगे.

यह निर्णय ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आशा की एक नई किरण लेकर आया, जो बड़े पैमाने पर भेदभाव और सामाजिक अन्याय चुपचाप सहने को मजबूर थे. इस फैसले ने ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक मान्यता और अधिकार प्राप्त करने में मदद की. साथ ही इस समुदाय के सदस्यों को संभवतः आरक्षण प्रदान करने, आधार कार्ड, पैन कार्ड जैसे पहचान पत्र जारी करने और कानूनी अधिकारों तक पहुंच सुनिश्चित करने के महत्व को भी इसने स्‍पष्‍ट किया.

फैसले के बारे में बात करते हुए, ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता और TWEET फाउंडेशन की अध्यक्ष अभिना अहेर ने कहा कि इस कानूनी मान्यता ने उन्हें हाशिये से उठाकर समाज की मुख्‍यधारा में ला दिया है.

यह (ट्रांसजेंडर) समुदाय बुरी तरह कलंकित था, पर कानून के दायरे में आने से समुदाय के किसी सदस्य के साथ यौन दुर्व्यवहार होने पर अन्य लोगों की तरह ही इन्‍हें भी पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज कराने का अधिकार मिल गया, जो पहले नहीं था

इस कानूनी पहल को आगे बढ़ाते हुए, सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 लेकर आई, जो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद जनवरी 2020 से एक कानून के रूप में लागू हो गया है. इस अधिनियम का मकसद ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना है.

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अधिनियम के तहत ट्रांसजेंडर को परिभाषित किया गया

अधिनियम में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका लिंग जन्म के समय तय किए गए लिंग से मेल नहीं खाता है, जिसमें ट्रांस-पुरुष और ट्रांस-महिलाएं, लिंग-विषम, किन्नर और हिजड़ा जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति और इंटरसेक्स वाले व्यक्ति शामिल हैं. भिन्नताएं (एक व्यक्ति जो जन्म के समय अपनी प्राथमिक यौन विशेषताओं, बाह्य जननांग, गुणसूत्रों, हार्मोन या पुरुष या महिला शरीर के मानकों से में भिन्नता रखता है.

अधिनियम के तहत ट्रांसजेंडर को मान्यता दिया जाना

ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने के लिए किसी व्यक्ति को पहचान प्रमाण पत्र के लिए जिला मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करना होता है. आवेदक के नाबालिग होने पर माता-पिता या कानूनी अभिभावक को यह आवेदन जमा करना होगा. अधिनियम के तहत जिला मजिस्ट्रेट निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के बाद प्रमाण पत्र जारी करेगा.

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा प्रदान किया गया ट्रांसजेंडर प्रमाणपत्र और पहचान पत्र (टीजी कार्ड) राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है साथ ही यह SMILE (आजीविका और उद्यम के लिए सीमांत व्यक्तियों के लिए समर्थन) योजना के तहत प्रदान किए जा रहे कल्याणकारी उपायों का लाभ उठाने के लिए एक जरूरी दस्तावेज है. इस प्रमाणपत्र को व्यक्ति के सभी आधिकारिक दस्तावेजों दर्ज किया जाएगा.

ऐसे मामले में, जहां व्यक्ति अपना लिंग बदलने के लिए सर्जरी कराते हैं, वे उस चिकित्सा संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक या मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी प्रमाण पत्र के साथ जिला मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकते हैं, जहां उस व्यक्ति की सर्जरी हुई थी. ट्रांसजेंडर पहचान प्रमाण पत्र (टीजी कार्ड) प्राप्‍त करने वाला व्यक्ति अपने जन्म प्रमाण पत्र और अन्य सभी आधिकारिक दस्तावेजों में अपना पहला नाम बदलवाने का हकदार है.

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित प्रावधान

भेदभाव पर रोक: किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ उसकी लैंगिक पहचान के चलते भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए. इसके अलावा ट्रांसजेंडर लोगों को रोजगार के अवसरों, आम जनता के लिए उपलब्ध किसी भी सामान, आवास, सुविधाओं या स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के साथ-साथ आवागमन, संपत्ति खरीदने या किराए पर लेने, या सार्वजनिक कार्यालय में खड़े होने या पद धारण करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को शिक्षा से वंचित नहीं किया जाएगा. इसके साथ ही सरकार द्वारा वित्त पोषित या मान्यता प्राप्त संस्थानों को ट्रांसजेंडर लोगों को शिक्षा, खेल, मनोरंजन और अवकाश गतिविधियों के समान अवसर प्रदान करने होंगे.

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद की स्थापना: अधिनियम एक वैधानिक निकाय, ‘नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स’ की स्थापना की बात करता है. यह परिषद (काउंसिल) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के संबंध में नीतियों, कार्यक्रमों, कानून और परियोजनाओं के निर्माण पर केंद्र सरकार को सलाह देने का कार्य करेगी. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समानता और पूर्ण भागीदारी दिलाने के लिए बनाई गई नीतियों और कार्यक्रमों के असर की निगरानी और मूल्यांकन करना, सभी विभागों की गतिविधियों की समीक्षा और समन्वय करना. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिकायतों का निवारण और केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अन्य कार्य करना भी इसके जिम्‍मे होगा. इस परिषद की स्थापना के बाद सरकार ने पिछले दो वर्षों में लगभग तीन से चार बैठकें भी की हैं.

अभिना अहेर का कहना है कि,

इस सबका एक दुखद पहलू यह भी है कि इस परिषद की स्थापना के बावजूद इसके सदस्यों को लगता कि उन्हें केवल सरकारी एजेंडे पर सहमति जताने के लिए चुना गया है. परिषद के सदस्यों लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, आर्यन पाशा, ज़ैनब ने ‘गरिमा गृह’ आश्रय घरों के लिए लंबित फंडिंग पर सरकार पर दबाव डालने की कोशिश की, फिर भी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया

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कल्याणकारी उपाय करना: अधिनियम केंद्र और राज्य सरकारों को समाज में ट्रांसजेंडर लोगों के समावेश को सुनिश्चित करने के लिए उनके कल्याण के लिए उपाय तैयार करने का आदेश देता है. ऐसे उपाय भी होने चाहिए जो ट्रांसजेंडर के प्रति संवेदनशील हों और कलंक की भावना मिटाने और भेदभाव खत्‍म करने का संदेश दें. अधिनियम के तहत सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्ति के बचाव, सुरक्षा, पुनर्वास और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम भी उठाएगी.

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सभी ट्रांसजेंडर व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 15 (भेदभाव रहित), अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर), अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसे मौलिक अधिकारों के हकदार हैं और भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 अन्‍य लोगों की तरह ही उन्‍हें भी जीवन का अधिकार प्रदान करता है.

अधिनियम के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारें राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बीच एचआईवी के प्रसार को रोकने के लिए ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) सीरो-निगरानी केंद्र की अलग से स्‍थापना करेंगी.

सरकारें ट्रांसजेंडर लोगों को लिंग परिवर्तन सर्जरी, हार्मोनल थेरेपी, लेजर थेरेपी जैसी सहित चिकित्सा सुविधाएं और उपचार से पहले व बाद में हेल्‍थ केयर की सुविधा प्रदान करेंगी. सरकारें ट्रांसजेंडर लोगों की विशेष स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के समाधान, उन्‍हें अस्पतालों में इलाज मुहैया कराने और उनके इलाज के लिए डॉक्‍टरों की व्‍यवस्‍था व इलाज खर्चों को कवर करने की व्‍यवस्‍था भी करेंगी.

अधिनियम के तहत दंड

अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध यह हैं: यदि कोई किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को सरकार द्वारा लगाई गई किसी भी अनिवार्य सेवा के अलावा, जबरन या बंधुआ मजदूरी में भाग लेने के लिए मजबूर करता है या लालच देता है; किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को सार्वजनिक स्थान पर जाने के अधिकार से वंचित करता है, या ऐसी पहुंच में बाधा डालता है; किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को घर, गांव या अन्य निवास स्थान को छोड़ने के लिए मजबूर करना या इसकी वजह बनाना या किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के जीवन, सुरक्षा, स्वास्थ्य, या मानसिक या शारीरिक नुकसान पहुँचाता है या खतरे में डालता है या उनके खिलाफ शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक दुर्व्यवहार करता है, तो अधिनियम के तहत यह अपराध माना जाएगा और ऐसे सभी मामलों में उस व्यक्ति या व्यक्तियों को जुर्माना और कम से कम छह महीने और दो साल तक की कैद की सजा होगी.

अधिनियम में आरक्षण

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 को ट्रांसजेंडर कार्यकर्ताओं और समुदाय के सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ा है. विरोध के कारणों में विचित्र दंड धाराओं से लेकर अपमानजनक पहचान की शर्तें और ट्रांस लोगों के लिए आरक्षण की कमी शामिल हैं.

ट्रांसजेंडरों को देश में समान अधिकार दिलाने के लिए कार्य करने वाले हरीश अय्यर, जो इस क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखते हैं, का कहना है कि इस अधिनियम में इरादा और तत्व तो है, लेकिन इसे लागू करने की व्यवस्था नहीं है.

एनएएलएसए फैसले से लेकर इस अधिनियम के लागू होने के बावजूद हमें ये चीजें जमीनी स्तर पर उतरती नहीं दिखाई दी हैं. यह अधिनियम शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी चीजों में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने और उनकी स्वयं चुनी गई लिंग पहचान के अधिकार को मान्यता देने के लिए लाया गया था, इसके बावजूद रोजमर्रा की जिंदगी से लेकर नौकरी तक में इनका उत्पीड़न बदस्‍तूर जारी है

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अभिना अहेर ने कहा कि ट्रांसजेंडर प्रमाणपत्र प्राप्त करना अपने आप में एक परेशानियों भरा काम है.

कई ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पहचान प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए जिला मजिस्ट्रेटों के इनकार का सामना करना पड़ा है. वे नौकरशाही की लालफीताशाही के शिकार हुए हैं. इसके अलावा ऐसे कई लोग डीएम के पास जाने से इस वजह से डरते रहे हैं, क्योंकि उनसे उनके जननांगों, यौन प्राथमिकताओं और जिस तरह की सर्जरी से वे गुज़रे हैं, उसके बारे में अनुचित सवाल पूछे गए थे

नाबालिग आवेदन के बारे में बात करते हुए, श्री अय्यर ने कहा कि अधिनियम के तहत उन नाबालिगों के लिए कोई प्रावधान नहीं है, जो माता-पिता या स्थानीय अभिभावक द्वारा यौन हिंसा, दुर्व्यवहार या हमले शिकार होते हैं.

इस बात की क्या गारंटी है कि नाबालिग के लिए आवेदन दायर किया जाएगा? और यदि माता-पिता या अभिभावक हिंसा के अपराधी हैं तो क्या होगा? हम ऐसे मामलों को आखिर किस तरह देख रहे हैं?

47 वर्षीय अभिना अहेर इस अधिनियम की अन्‍य खामियों को उजागर करते हुए कहते हैं कि अधिनियम में तय किए गए दंड हल्के किस्‍म के हैं.

समुदाय के खिलाफ भेदभाव के लिए कम से कम छह महीने और अधिकतम दो साल तक के कारावास का प्रावधान है, भले ही ट्रांसजेंडर व्यक्ति के खिलाफ किसी भी प्रकार का अपराध किया गया हो. इसलिए, यदि किसी भी सदस्य के साथ भेदभाव किया जाता है या यौन शोषण किया जाता है, तो कृत्य के लिए सजा वही रहेगी, जो कि ठीक नहीं है. अब भी, भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की हत्याओं और बलात्कारों के ज्‍यादातर मामले सामने नहीं आ पाते या कम रिपोर्ट किए जाते हैं. ऐसे में ये मामूली सजाएं अपने मकसद को पूरा करने में सक्षम नहीं दिखतीं

दूसरी बात यह है कि यह अधिनियम ट्रांसजेंडर लोगों के पुनर्वास द्वारा उनकी सुरक्षा की बात तो करता है, पर वास्‍तव में इन चीजों के बजाय ट्रांसजेंडर लोगों को सशक्त बनाने की जरूरत है. आइए, ट्रांसजेंडरों के लिए कुछ सरकारी कल्याणकारी उपायों पर नजर डालें:

गरिमा गृह: अधिनियम के तहत सरकार द्वारा उठाए गए कल्याणकारी उपायों में से एक गरिमा गृह की स्थापना थी, जो आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं के साथ ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए एक आश्रय गृह हैं. इस तरह के करीब 12 आश्रय स्थल दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई और अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थापित किए गए थे. इन्हें राष्ट्रीय सामाजिक रक्षा संस्थान (एनआईएसडी) द्वारा नियंत्रित किया जाता था और इनके निगरानीकर्ता जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) थे. सुश्री अहेर ने बताया कि स्थापना के पहले छह महीनों के दौरान तो सरकार ने इनके लिए धन दिया, लेकिन उसके बाद इन गरिमा गृहों के लिए कोई रकम सरकार की ओर से नहीं दी गई.

लगभग डेढ़ साल तक कई ऑडिट रिपोर्ट सरकार को भेजने के बावजूद कोई पैसा नहीं आया

सुश्री अहेर दो आश्रय गृहों की देखरेख करती हैं: इनमें ट्रांसमेन और ट्रांसवुमन के लिए मुंबई के गोरेगांव में गरिमा गृह और ट्रांसमेन के लिए गुड़गांव स्थित आश्रय गृह शामिल है. इन आश्रय गृहों में ट्रांसजेंडरों के लिए कौशल विकास पाठ्यक्रम, जीवन कौशल, कैरियर परामर्श कार्यक्रम और अन्य ग्रूमिंग सेशन चलाए जाते हैं. इसके अतिरिक्त, अहेर और उनकी टीम ने समुदाय के सदस्यों को मॉक इंटरव्‍यू के लिए भी तैयार किया और उन्हें कंप्यूटर का प्रशिक्षण दिया. ये सभी प्रशिक्षण और कार्यक्रम ‘गुरुकुल’ नामक पहल के तहत आयोजित किए जाते हैं.

डेढ़ साल की अवधि में, इन आश्रयों ने ट्रांसजेंडर समुदाय के 55 से अधिक सदस्यों को प्रशिक्षित किया है, जिनमें से 60 प्रतिशत काम कर रहे हैं. फिलहाल सुश्री अहेर 12 गरिमा गृहों में से केवल एक को ही संचालित कर पा रही हैं, क्योंकि उनमें से ज्‍यादातर अब बंद हो चुके हैं.

लगभग 30-25 प्रतिशत गरिमा गृह पहले ही बंद हो चुके हैं, और शेष आश्रय गृह न्यूनतम वित्तीय सहायता के सहारे जैसे-तैसे चल रहे हैं. हर बार जब हम प्रस्तुत रिपोर्टों के बारे में पूछते हैं; अधिकारियों का एक ही जवाब होता है कि फाइल सामाजिक न्याय मंत्रालय में अटकी हुई है. अब वे कह रहे हैं कि पैसा जुलाई में आएगा. हम तो बस उम्‍मीद ही रख सकते हैं

आयुष्मान ट्रांसजेंडर हेल्थ कार्ड: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस (एनआईएसडी) के तहत, सरकार ने आयुष्मान ट्रांसजेंडर कार्ड (टीजी कार्ड) भी लॉन्च किया, जो सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) के लिए 1 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने वाला था, लेकिन यह कभी भी सफल नहीं हो सका, क्योंकि अब तक इस पहल को लागू करने के लिए कोई वित्तीय अनुदान प्रदान नहीं किया गया है.

अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में बात करते हुए, सुश्री अहेर ने कहा कि शायद ही कोई ऐसा अस्पताल हो जिसमें ट्रांसजेंडर लोगों के लिए अलग से कोई ऐसा वार्ड हो, जिसमें लिंग परिवर्तन सर्जरी, हार्मोनल और लेजर थेरेपी की जाए. मुंबई के केवल एक अस्पताल में सात से आठ वार्ड हैं और ऐसी चर्चाएं हैं कि दिल्ली का अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान (एम्स) लिंग परिवर्तन सर्जरी शुरू करने की तैयारी कर रहा है.

सीरो-निगरानी केंद्र: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अबतक ट्रांसजेंडरों के लिए अलग से एक भी ‘मानव इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस सीरो-निगरानी केंद्र’ शुरू नहीं किया जा सका है. अधिनियम के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बीच एचआईवी के प्रसार को रोकने के लिए इन केंद्रों को शुरू किया जाना था.

ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता रुद्राणी छेत्री ने बताया कि भारत में ट्रांसजेंडर लोगों में एचआईवी का प्रसार बहुत अधिक है. उन्होंने कहा,

इस समुदाय के बीच संक्रमण की दर अब भी सामान्य आबादी की तुलना में काफी अधिक है. इस असुरक्षित स्थिति को जानते हुए भी, इस मामले में देश की स्थिति खराब है.

लेकिन देश में कुछ निजी क्‍लीनिक हैं, जो समुदाय के लिए मददगार साबित हुए हैं, उदाहरण के लिए, मित्र (एमआईटीआर) क्‍लीनिक, जिसे एचआईवी-एड्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने वाले संगठन ‘सेफ जिंदगी’ द्वारा शुरू किया गया था. यह ‘प्रोग्राम एक्सेलरेट’ और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की मदद से मिलकर काम कर रहा है.

स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में समुदाय के सदस्यों को भेदभाव का सामना करना पड़ा है, जिसके कारण कई लोग इलाज के बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं. अभिना अहेर ने मामले का उदाहरण देते हुए बताया,

मुंबई में एचआईवी का इलाज करा रहे एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को बीच में ही इलाज छोड़ना पड़ा क्योंकि डॉक्टर उस व्‍यक्ति को उसके बदले हुए नए नाम के बजाय ‘पुराने’ नाम (जन्म के समय व्यक्ति को दिया गया नाम और अब लिंग परिवर्तन सर्जरी के बाद बदल गया नाम) से ही बुला रहे थे. हम में से कई लोगों का लिंग गलत है, जिसके चलते हमारे समुदाय के असंवेदनशीलता देखने को मिलती है

उन्होंने स्वास्थ्य सुविधाओं में ट्रांसजेंडर समुदाय के साथ होने वाली विसंगतियों की भी चर्चा की.

इमरजेंसी होने पर भी डॉक्टर देखने नहीं आते हैं या साधारण दवाएं देकर अस्पताल में भर्ती करने से बचते हैं. मुझे मेरे साथियों ने ऐसी कई घटनाओं के बारे में बताया है

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ट्रांसजेंडर समुदाय के कल्याण के उपाय

  • हरीश अय्यर ने कहा कि सरकार को ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति लोगों में संवेदनशीलता पैदा करने के कार्यक्रम आयोजित करके और आम जनता को इनके प्रति भेदभाव मिटाने के संदेश जारी कर समाज में ट्रांसजेंडर लोगों की स्‍वीकृति बढ़ाने के प्रयास करने की जरूरत है.
  • सुश्री अहेर ने ज्‍यादा संख्‍या में गरिमा गृह जैसे आश्रय गृह स्थापित करने के लिए अधिक संसाधन मुहैया कराने की जरूरत पर जोर दिया, जिससे ट्रांसजेंडर समुदाय को सम्मान के साथ अपना जीवन जीने में मदद मिल सके.
  • उन्होंने सरकार से सरकारी मशीनरी के भीतर ट्रांसजेंडर लोगों के लिए रोजगार के अवसरों में तेजी लाने का भी आग्रह किया. उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ पुलिस ने लगभग 13 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कांस्टेबल के रूप में भर्ती किया है. पुणे के नगर निगम (पीएमसी) ने अपने मुख्यालय सहित विभिन्न नागरिक प्रतिष्ठानों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए ठेके (कॉन्‍ट्रेक्‍ट) पर 25 ट्रांसजेंडर लोगों को नियुक्त किया है.
  • ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आरक्षण के लिए कर रही दलित ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता ग्रेस बानो ने शिक्षा और रोजगार में इस समुदाय के लिए ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) के बजाय क्षैतिज (हॉरिजोंटल) आरक्षण की आवश्यकता कई बार जताई है. क्षैतिज आरक्षण का अर्थ है सामान्य, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति आदि सहित प्रत्येक श्रेणी के भीतर अलग-अलग आरक्षण. जबकि, ऊर्ध्वाधर आरक्षण में सभी को एक साथ रखा जाता है और इस मोड में ट्रांस समुदाय को आरक्षण के लिए अन्य श्रेणियों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है, जिससे उनके लिए सीट पाने के अवसर कम हो जाते हैं. कई ट्रांसजेंडर व्यक्तियों ने लोक सेवा आयोग, पात्रता परीक्षा आदि की परीक्षाएं दी हैं, लेकिन आरक्षण न होने के चलते वे बेरोजगार रह गए हैं.
  • सुश्री अहेर राज्यसभा में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए एक सीट आरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहती हैं “यदि संसद में समुदाय का कोई व्यक्ति नहीं होगा, तो हमारी कठिनाइयों के बारे में कौन बात करेगा?”
  • श्री अय्यर और सुश्री अहेर दोनों ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार करने पर कड़े दंड की आवश्यकता पर जोर दिया है.

LGBTQIA+ कार्यकर्ताओं और समुदाय के व्यक्तियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें कहा गया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम- 2019 संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों की गारंटी का उल्लंघन करता है. हालांकि, यदि उपरोक्त उपायों को ध्यान में रखा जाए, तो समुदाय दशकों से चले आ रहे भेदभाव से जूझने में ही उलझे रहने के बजाय प्रगति की ओर कदम बढ़ा सकता है.

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