नई दिल्ली: 23 साल की आन्या विग को उनकी मां और उनकी बड़ी बहन ने मिलकर पाला है. आन्या इन दोनों को सभी तरह के काम करते हुए देखकर बड़ी हुई हैं. आन्या के जीवन में आई इन दो सुपरवुमन के कारण उसे विश्वास हो गया कि महिलाएं सभी काम करने में सक्षम है और किसी भी वजह से विवश नहीं हो सकती. फिर चाहें फुल टाइम काम करना हो या घर खर्च चलाना हो. लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ी हुई और घर से बाहर की दुनिया को जाना तो उसने पाया की महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं मिला है, इस वास्तविकता ने जहां उसे निराश किया वहीं महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रेरणा भी आन्या को इसी से मिली. आन्या कहती हैं,
दुनिया महिलाओं को लीडर के तौर पर नहीं देखती है. उन्हें हमेशा दोयम दर्जे पर रखा जाता है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज की पूर्व छात्रा, आन्या कहती हैं,
मेरे ग्रेजुएशन के सेकंड ईयर में ही मुझे यह अहसास हुआ कि भारत में ज्यादातर लड़कियों के पास उस तरह की पहुंच नहीं है जो लेडी श्रीराम कॉलेज ने मुझे केवल एक साल में दी है. मैं देश भर की लड़कियों को वह पहुंच, नॉलेज और रिसोर्स प्रदान करना चाहती थी
इस तरह आन्या ने अपने बैच की तीन साथियों – सौम्या, अनम और अरुणिमा के साथ मिलकर यूनाइटेड नेशन फाउंडेशन की मदद से एक स्टूडेंट कलेक्टिव ‘गर्ल अप राइज (Girl Up Rise)’ की शुरुआत की, जो महिलाओं और उनके स्वास्थ्य, खास तौर से मासिक धर्म से जुड़ी साफ-सफाई पर फोकस करती है. 2010 में यूनाइटेड नेशन फाउंडेशन (UNF) द्वारा ‘गर्ल अप’ की स्थापना की गई, जो किशोर लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को सपोर्ट करने के लिए अपनी तरह की शुरुआती पहल थी. यह एक वैश्विक आंदोलन है, जो सभी लड़कियों और युवाओं को लीडर बनने के लिए साथ लाता है और उन्हें प्रशिक्षित करता है.
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गर्ल अप राइज की को-फाउंडर आन्या कहती हैं,
संयुक्त राष्ट्र फाउंडेशन के अंतर्गत होने की वजह से हमें उनका ब्रांड स्टैम्प मिला. हमने 2019 के अंत में इसकी शुरुआत की और उस वक्त गर्ल अप भारत में एक मूवमेंट के तौर पर बहुत नया था. तब ‘गर्ल अप’ में केवल दो लड़किया शामिल थीं.
अपनी पहल के बारे में और बात करते हुए आन्या ने कहा,
इसे शुरू करने के तुरंत बाद, महामारी का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से लगभग दो सालों के लिए लॉकडाउन लगा और कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए. हम मुख्य रूप से ऑनलाइन एडवोकेसी पर निर्भर थे और फिर हमने पीरियड पॉवर्टी को खत्म करने के लिए #SpotTheStigma जैसे अभियान शुरू किए.
स्पॉट द स्टिग्मा के तहत मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के दो पहलुओं पर फोकस किया गया है, जिसमें सैनिटरी अब्जॉर्बेंट (Absorbents) तक पहुंच जैसे नैपकिन या रीयूजेबल पैड्स और मासिक धर्म से जुड़ी शिक्षा शामिल हैं.
सैनिटरी प्रोडक्ट तक पहुंच में सुधार लाने के लिए, हमने फंड जुटाना शुरू किया और इससे 35,000 रुपये इकट्ठा करने में कामयाब भी रहे, जिसका इस्तेमाल हमने 10,000 सैनिटरी नैपकिन खरीदकर बांटने के लिए किया. उन पैड्स को छह राज्यों के अलग-अलग समुदायों के लोगों के बीच बांटा गया था.
मासिक धर्म से जुड़ी स्वच्छता के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए, यह टीम गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के साथ भी सहयोग करती है और छोटे बच्चों को पीरियड्स के बारे में शिक्षित करने और उससे जुड़े मिथकों को तोड़ने के लिए वर्कशॉप आयोजित करती है. आन्या कहती है,
किशोरों के साथ वर्कशॉप आयोजित करते समय, हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि लड़के भी वर्कशॉप के सेशन में हिस्सा लें. इसका मकसद 10 या 13 साल की उम्र में लड़कियों और लड़कों दोनों को मासिक धर्म के बारे में शिक्षित करना है. दरअसल, 25 साल की उम्र में यह समझाना की पीरियड के दौरान पौधे को पानी देने से पौधा नहीं मरता काफी कठिन है. लेकिन कम उम्र बच्चों को कोई बात समझाना ज्यादा आसान होती है क्योंकि वो नई चीजें सीखने के लिए तैयार होते हैं. हम उन्हें समझाते हैं कि हमने पीरियड के दौरान अचार के जार को छुआ और इससे अचार खराब नहीं हुआ, आप भी आजमाकर देखें.
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शिक्षा के माध्यम से पीरियड पॉवर्टी को खत्म करने के अपने लक्ष्य को पाने के लिए, इन लड़कियों ने पीरियड और प्यूबर्टी पर फोकस करते हुए ‘मेंस्ट्रुरल हेल्थ मॉड्यूल’ तैयार किया है. वर्कशॉप के दौरान इस मॉड्यूल के बारे में जानकारी देते हुए, आन्या कहती हैं,
हमारे मॉड्यूल काफी विस्तृत हैं, जिसमें कई विषयों को शामिल किया गया है जैसे शारीरिक परिवर्तन, खून का रंग क्या बताता है और कब डॉक्टर के पास जाना चाहिए. डॉक्टर हमेशा हमारे साथ नहीं होते इसलिए हम हैवी ब्लीडिंग या लंबे समय तक चलने वाले पीरियड से जुड़े सवालों का जवाब नहीं दे सकते हैं. ऐसी स्थितियों में, हम उन्हें पास के सरकारी अस्पताल में जाकर मदद लेने की सलाह देते हैं. हालांकि हमने इन मॉड्यूल को खुद तैयार किया है, लेकिन स्त्री रोग विशेषज्ञों द्वारा उनकी जांच की जाती है. चूंकि इस मॉड्यूल की सामग्री स्थानीय भाषाओं में है इसलिए अनुवाद के दौरान इंफॉर्मेशन लॉस या मिसकम्युनिकेशन से बचने के लिए हमने इसको चेक भी कराया है.
यह टीम इस बात पर भी फोकस करती है कि महिलाओं को इतना सक्षम बनाएं कि वो अपने नेताओं और जनप्रतिनिधियों से साफ पानी और मुफ्त या सस्ती सैनिटरी नैपकिन की मांग कर सकें. आन्या कहती है,
हम उनसे कहते हैं कि आपको सिर्फ दाना-पानी की ही मांग नहीं करनी चाहिए. एक महिला के रूप में, मुफ्त पैड और साफ पानी भी आपका अधिकार है. वो खुद अपने अधिकारों को समझ सकें और हमें हमेशा हस्तक्षेप न करना पड़े. हम उन्हें हमेशा मासिक धर्म स्वच्छता उत्पाद प्रदान नहीं कर सकते हैं.
हाल ही में गर्ल अप राइज (जिसे अब ‘हर हक’ के नाम से जाना जाता है) ने मासिक धर्म से जुड़े टैबू (वर्जनाओं) को तोड़ने के लिए वंचित बच्चों की शिक्षा पर काम करने वाले नोएडा स्थित गैर सरकारी संगठन ‘पार्कशाला’ के साथ मिलकर काम शुरू किया. इस वर्कशॉप में 10 साल से ज्यादा उम्र के 65 बच्चों (47 लड़कियों और 18 लड़कों) ने हिस्सा लिया.
NGO पार्कशाला की संस्थापक प्रिया गुप्ता ने पीरियड्स पर वर्कशॉप आयोजित करने का अपना अनुभव साझा किया. वो लफ्ज जिसके बारे में अक्सर फुसफुसाहट होती है को लेकर प्रिया ने कहा-
आप लड़कियों को अलग ले जाकर शिक्षित नहीं कर सकते. वे पहले से ही इसके बारे में काफी कुछ जानते हैं. आपको इसके बारे में बात करते समय लड़कों को भी शामिल करना होगा. इस सेशन में पीरियड से जुड़ी बेसिक बातें शामिल की गई थीं जैसे कि इसका बायोलॉजिकल प्रोसेस और पीरियड्स के दौरान लड़कियां और महिलाएं शारीरिक रूप से, भावनात्मक रूप से और मानसिक रूप से क्या बदलाव महसूस करती हैं.
प्रिया गुप्ता का कहना है कि बच्चों को दी जाने वाली जानकारी नई या लीग से हटकर नहीं होती है. यहां इस विषय पर बातचीत को सामान्य बनाने के बारे में ज्यादा जोर दिया जाता है. वह कहती हैं,
आपको ‘पीरियड्स’ के लिए दूसरे नामों को इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है जैसे ‘यह महीने का वो टाइम है’ या ‘मुझे पेट में दर्द है’. आपको यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि, ‘मैं स्कूल या काम पर नहीं आ सकती या मुझे जल्दी जाने की जरूरत है क्योंकि मुझे पीरियड हो रहे हैं’. सेशन के दौरान, युवा लड़कों के जवाब सुनकर काफी खुशी हुई जैसे जब उनसे पूछा गया ‘अगर आपकी बहन या मां पीरियड पर हैं तो आप क्या करेंगे?’ उन्होंने जवाब में कहा कि हम उन्हें एक गर्म पानी की थैली देंगे और इस बात का ख्याल रखेंगे की उन्हें आराम मिले.
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2022 में ‘गर्ल अप राइज’ बदलकर ‘हर हक’ हो गया जो लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था है. यह ऑर्गनाइजेशन आन्या और सौम्या सिंघल मिलकर चला रही हैं, जो इसकी को-फाउंडर भी हैं, और इसके जरिए वह तीन खास मुद्दों पर काम कर रही हैं – मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन, कानूनी साक्षरता और वित्तीय साक्षरता. यह चार सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDG) पर भी फोकस कर रही है, जिसमें अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, बेहतर शिक्षा, जेंडर इनइक्वालिटी और असमानताओं में कमी, शामिल हैं.
इस पहल से अभी तक 80 से ज्यादा वॉलेंटियर जुड़ चुके हैं और इसके द्वारा उठाए जा रहे कदम काफी हद तक सेल्फ-फंडेड और डोनेशन पर निर्भर है.
‘हर हक’ रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में है और अपने अन्य दो मुद्दे – कानूनी साक्षरता और वित्तीय साक्षरता पर ज्यादा फोकस करके अपनी इस पहल को और विस्तार देना चाहता है. आन्या कहती है,
हम जल्द ही एक प्रोग्राम लॉन्च करने की उम्मीद कर रहे हैं जहां हम युवा लड़कियों को अपनी खुद की पहल शुरू करने और जेंडर-इक्वल वर्ल्ड बनाने के लिए सलाह देंगे.
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