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कोई पीछे नहीं रहेगा

न्याय की लड़ाई: केरल की पहली ट्रांसजेंडर वकील पद्मालक्ष्मी ने बताया कानूनी प्रणाली कैसे रखे तीसरे लिंग का ख्‍याल

‘बनेगा स्वस्थ इंडिया’ से ट्रांसजेंडर वकील पद्मालक्ष्मी से उनके प्रारंभिक वर्षों, उन्हें मिले पारिवारिक समर्थन और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कानूनी अधिकारों में समानता के संघर्ष पर विस्तार से बातचीत की

द्वारा: देवयानी मदैइक | एडिट: सोनिया भास्कर |
June 30, 2023 Read In English
न्याय की लड़ाई: केरल की पहली ट्रांसजेंडर वकील पद्मालक्ष्मी ने बताया कानूनी प्रणाली कैसे रखे तीसरे लिंग का ख्‍याल
पद्मालक्ष्मी ने ग्रेजुएशन के दौरान कई अधिवक्ताओं के अधीन लीगल ट्रेनी के रूप में काम किया है. वर्तमान में 27 वर्षीय एक सफल स्वतंत्र वकील हैं, जो 2023 में केरल बार काउंसिल में नामांकित हुई एवं न्यायिक, आपराधिक और पारिवारिक मामलों पर काम कर रहे हैं
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नई दिल्ली: स्कूल में बहुत सारे दोस्त होना या शिक्षणेतर गतिविधियों में शामिल होने जैसी कोई भी चीजें पद्मालक्ष्मी की बचपन की यादों में शामिल नहीं हैं. केरल के एर्नाकुलम शहर के मंजुम्मेल में गार्जियन एंजल्स पब्लिक स्कूल में पढ़ाई करने वाली पद्मालक्ष्मी के लिए जन्म के समय के लिंग (जेंडर) और उनकी वास्तविक लैंगिक पहचान के बीच टकराव तभी से शुरू हो गया था, जब वह काफी छोटी थीं. महज छह साल की उम्र में पद्मालक्ष्मी को इस अहसास और भ्रम की स्थिति से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ा कि इसे लेकर वह अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त करें या जो वह महसूस कर रही थी वह सही था या गलत.

केरल के पहले ट्रांसजेंडर वकील के शुरुआती साल

LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों के लिए संघर्ष तब शुरू होता है जब उन्हें अपने भीतर के लैंगिक विरोधाभास का एहसास होता है. इसके बाद उनके भीतर चल रहा यह संघर्ष बाहरी दुनिया में आ जाता है और फिर यह रहस्योद्घाटन परिवार के बाद घर से बाहर की दुनिया में पहुंचता है. पद्मालक्ष्मी का पालन-पोषण कोच्चि के एडापल्ली में एक निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ. वह तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं. उनकी मां जया एक वकील के यहां क्लर्क के रूप में काम करती थीं, जबकि उनके पिता मोहन विभिन्न विषयों पर रचनात्मक बातचीत करते थे. पद्मालक्ष्मी ने कभी भी किसी को यह नहीं बताया कि वह कैसा महसूस कर रही हैं और अपने किशोरावस्था तक अपने आंतरिक संघर्ष को खुद तक ही सीमि‍त रखा. वह कहती हैं-

मुझे डर था कि मेरे सहपाठी, शिक्षक और मेरा परिवार वाले मुझे पागल समझेंगे. मैं जेंडर डिस्फोरिया से जूझ रही थी. उन्होंने कहा, अपने हाई स्कूल के वर्षों के दौरान मैंने फैसला किया कि मैं अपनी सच्चाई केवल अपनी शिक्षा और पेशे के माध्यम से बताऊंगी

कॉलेज के दिनों में पद्मालक्ष्मी का संघर्ष

पद्मालक्ष्मी ने 2019 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, एर्नाकुलम से बैचलर ऑफ लॉ (एलएलबी) की पढ़ाई की. इस समय उन्‍हें एक भीतर से परेशान करने वाला एहसास हुआ, जब उन्हें प्रवेश फॉर्म में खुद को एक पुरुष के रूप में नामांकित करना पड़ा. उन्‍होंने बताया-

फॉर्म में केवल दो विकल्प थे – पुरुष या महिला, कोई तीसरा लिंग नहीं था. मुझे पुरुष विकल्प के साथ जाना पड़ा वर्ना मुझे अपने सभी दस्तावेजों में बदलाव करवाना पड़ता और सभी को सत्यापित भी करवाना होता, जो मैंने तब तक नहीं किया था. मुझे किसी भी कीमत पर अपने पेशे की ओर कदम बढ़ाना था और पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना था, जिसमें मैं कोई देरी करना नहीं चाहती थी

इसे भी पढ़ें: प्राइड मन्थ स्पेशल: समलैंगिक जोड़े की प्रेम कहानी में LGBTQIA+ समुदाय की अग्नि परीक्षा की दास्तां 

पद्मालक्ष्मी के लिए स्नातक करने का वक्‍त काफी मुश्किल भरा रहा, क्योंकि उनके साथ भेदभाव किया जाता था. दूसरे छात्र उन्‍हें अलग-अलग नामों से बुलाकर चिढ़ाते थे. उन्‍हें फ्रेंड सर्किल से अलग कर दिया गया और कई लोगों ने उनसे किनारा कर लिया. इसके बावजूद उन्‍होंने तय किया कि इस सबसे वह अपनी पढ़ाई में और लक्ष्य की राह में कोई बाधा नहीं आने देंगी. जब तक आखिरी सेमेस्टर के दौरान उसे अपने पिता का फोन नहीं आया, तब तक उन्‍हें यह एहसास नहीं हुआ कि उन्‍हें जीवन भर एक झूठी पहचान के साथ नहीं रहना पड़ेगा.

मैं तुम्‍हें बताना चाहती हूं कि हमें सबकुछ पता है और, हमें किसी स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं है. तुम बस एक चीज पर फोकस रखो, वह है अपनी शिक्षा. तुमने लोगों द्वारा तुम्‍हें तरह तरह के नामों से पुकारते सुना होगा और तुम्‍हें खुद से दूर करते हुए भी देखा होगा, लेकिन इन चीजों को वकील बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधा न बनने दो. अपनी ऊर्जा को अपने लक्ष्य-प्राप्ति की दिशा में लगाओ. याद रखो, तुम किसी भी कलंक से परे हो

अपने माता-पिता के साथ इस एक कॉल से उसके मन की तकरीबन सारी उलझनें दूर हो गईं. पद्मालक्ष्मी कहती हैं, अपने माता-पिता की यह प्रेम भरी स्वीकृति उनके लिए आधी लड़ाई जीतने जैसी थी. यह बात LGBTQIA+ समुदाय के व्यक्ति की मानसिक और भावनात्मक बाधाओं को हल कर सकती है. हमारे समुदाय में कई लोग आज भी अपने परिवारों के भीतर हिंसा का सामना कर रहे हैं. इनमें दुर्व्यवहार, जबरन शादी किए जाना, घर में नजरबंदी से लेकर शिक्षा और रोजगार के अवसरों में बाधाएं उत्‍पन्‍न किया जाने जैसी चीजें शामिल हैं.

मेरे माता-पिता मेरी यात्रा में समान रूप से लड़ने वाले हैं. यह उनका समर्थन ही था, जिसने वकील बनने की मेरी यात्रा को आगे बढ़ाने में मेरी सबसे ज्‍यादा मदद की

एलएलबी की पढ़ाई के दौरान ही पद्मालक्ष्मी ने ट्रांसजेंडर पहचान प्रमाण पत्र के लिए भी आवेदन कर दिया था और अपने सभी दस्तावेजों और कार्डों में बदलाव करवा लिया था. अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, 27 वर्षीया पद्मालक्ष्मी ने अपने संशोधित दस्तावेजों के साथ बार काउंसिल ऑफ केरल में अपना नामांकन कराया. विभाग के प्रभारी अधिकारी ने पद्मालक्ष्मी को बताया कि वह काउंसिल में नामांकित होने वाली पहली ट्रांसजेंडर व्यक्ति थीं. यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई और वह देखते ही देखते वह कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गईं. जब राज्य के कानून मंत्री पी. राजीव को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने पद्मालक्ष्मी को हर संभव सहायता दी और अपने प्रोत्साहन भरे शब्दों से हौसला बढ़ाया.

पद्मालक्ष्मी ने स्नातक स्तर की पढ़ाई के दौरान कई अधिवक्ताओं के अधीन लीगल ट्रेनी के रूप में काम किया है. वर्तमान में वह एक सफल वकील हैं. 2023 में बार काउंसिल ऑफ केरल में नामांकित होने वाली पद्मालक्ष्मी आज न्यायिक, आपराधिक और पारिवारिक मुकदमों में स्‍वतंत्र रूप से पैरवी कर रही हैं.

न्याय के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय का संघर्ष

पद्मालक्ष्मी ने अदालत में कई मुकदमे लड़े हैं, जिनमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के मामले भी शामिल हैं. वह कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दिए जाने के बावजूद ट्रांसजेंडर समुदाय को न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

इसे भी पढ़ें:क्वीर समुदाय से आने वाली 18 साल की ओजस्वी और उसके मां के संघर्ष की कहानी

जिस केस को वह वर्तमान में देख रही है, उसमें उनके ट्रांसजेंडर मुवक्किल पर एक व्यक्ति द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था, जिसके बाद पीड़िता ने कानून के अनुसार पुलिस से संपर्क किया था. विभाग ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम, 2019 की धारा 18 क्लॉज डी किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के जीवन, सुरक्षा, स्वास्थ्य या कल्याण को नुकसान पहुंचाना या मानसिक अथवा शारीरिक चोट पहुंचाना, खतरे में डालना या ऐसा कृत्य करने की प्रवृत्ति रखना) के तहत एक एफआईआर दर्ज की है. जिसमें शारीरिक शोषण, यौन शोषण, मौखिक और भावनात्मक शोषण और आर्थिक शोषण शामिल है, जिसके लिए कम से कम छह महीने से लेकर दो साल तक के कारावास का प्रावधान है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है)। बाद में खुद को कारावास से बचाने के लिए आरोपी ने धारा 326 के तहत एक जवाबी एफआईआर दर्ज करा दी, जिसके आधार पर उनके मुअक्किल पीड़ित को सलाखों के पीछे डाला जा रहा था. जिसमें उसे दस साल तक की जेल हो सकती थी. अपराधी ने अपनी एफआईआर में आरोप लगाया था कि ट्रांसजेंडर (पद्मालक्ष्मी के मुअक्किल) ने उसे खतरनाक हथियारों से गंभीर चोट पहुंचाई.

पद्मालक्ष्मी ने अपने मुवक्किल के लिए अग्रिम जमानत याचिका दायर की. यह मामला फिलहाल कोर्ट में चल रहा है. उन्होंने कहा कि उनका यह केस आज के समय में ट्रांसजेंडरों के साथ हो रही भयावह वास्तविकता को दर्शाता है.

यौन उत्पीड़न के अपराधी को अधिकतम दो साल के बाद बरी किया जा सकता है, क्योंकि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति द्वारा शिकायत केवल ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम में उल्लिखित धाराओं के तहत दर्ज की जाती है, जबकि उनके मुअक्किल को दस साल तक के कारावास की सजा का सामना करना पड़ सकता है. यह ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम की सबसे बड़ी समस्या है. इसके अलावा भी अधिनियम की कई उपधाराओं में ऐसी ही कई खामियां मौजूद हैं.

पद्मालक्ष्मी ने केरल में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के ऐसे कई मामलों का उदाहरण दिया, जो किन्हीं कारणों से अभी भी खत्‍म नहीं किए गए हैं.

आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि कई मामले, जिनमें ट्रांसजेंडर लोगों की हत्या कर दी गई, उनके मामले अभी भी बंद नहीं हुए हैं. मैंने जब भी पुलिस अधिकारियों से कुछ मामलों के बारे में पूछा, तो उन्‍होंने कहा कि इसकी जांच चल रही है. ज्यादातर मामलों में चार से पांच साल से अधिक का समय हो गया है. तीन ट्रांसजेंडर – शालू, गौरी और मारिया की हत्याओं के केस ऐसे ही मामले हैं. इससे यह बात पता च‍लती है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति से जुड़े मामलों को किस तरह दरकिनार कर दिया जाता है

पद्मालक्ष्मी ने आगे कहा कि एक सामान्‍य महिला की तुलना में ट्रांसजेंडर महिला के यौन उत्पीड़न के लिए दंड बहुत कम है. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860 की धारा 375 और 376 जो बलात्कार से संबंधित हैं, पारंपरिक लिंग मानदंडों के अनुरूप है, जिसमें एक पुरुष को अपराधी और एक महिला को हमले की पीड़िता के रूप में माना गया है. आईपीसी के तहत एक महिला के बलात्कार के जघन्य मामलों में अधिकतम सजा मौत की सजा हो सकती है, जबकि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 18 के तहत एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति का शारीरिक, यौन, मौखिक और भावनात्मक शोषण के लिए केवल छह महीने से दो साल के कारावास का ही दंड है.

पद्मालक्ष्मी का कहना है कि इन विसंगतियों के चलते यह अधिनियम वर्तमान बलात्कार कानून में लैंगिक असमानता को संबोधित करने में विफल रहा है. उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर आबादी की रक्षा करने वाले नियमों को सख्त बनाने की जरूरत है और दंड को और कड़ा करने के लिए वर्तमान अधिनियम में संशोधन की जरूरत है. इसके अलावा, जिन ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया है, उनकी शिकायतें ट्रांसजेंडर संरक्षण अधिनियम के अलावा अन्य धाराओं के तहत भी दर्ज की जानी चाहिए.

पद्मालक्ष्मी ने यह भी कहा कि न्यायपालिका को ट्रांस हिंसा के मामलों में और संवेदनशील होने की जरूरत है. वह पुलिस स्टेशनों में ज्‍यादा संख्‍या में ट्रांसजेंडर सहायता डेस्क खोलने की जरूरत भी जताती हैं, जिससे ट्रांसजेंडरा लोगों के लिए न केवल अपराधों की रिपोर्ट दर्ज कराना आसान हो जाएगा, बल्कि एक सुरक्षित वातावरण भी तैयार होगा, जिसमें समुदाय के सदस्य अपने मुद्दों पर चर्चा कर सकेंगे और समर्थन मांग सकेंगे. इसके अलावा डेस्क को भेदभाव, भावनात्मक, शारीरिक, यौन या मौखिक हिंसा के खिलाफ शिकायतें दर्ज करने में सहायता प्रदान करनी चाहिए.

इसे भी पढ़ें: एक ‘क्वीर बच्चे’ को स्वीकार करने का एक माता का अनुभव

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