1992 में एक डॉक्टर-दंपति – डॉ रेगी जॉर्ज और ललिता रेगी ने तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के एक सुदूर आदिवासी गांव सित्तिलिंगी घाटी का दौरा किया. उस समय इस गांव में सभी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के लिए झोलाछाप डॉक्टर थे और काले जादू को बीमारियों का इलाज माना जाता था.
अपनी यात्रा के दौरान डॉक्टर जोड़ी को पता चला कि यहां पैदा हुए पांच बच्चों में से एक की मृत्यु उनके पहले जन्मदिन से पहले ही हो गई थी और कई माताओं की प्रसव के दौरान मृत्यु हो गई थी. उन्हें पता चला कि वहां पर स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच की समस्या है. निकटतम अस्पताल 48 किलोमीटर दूर था और शल्य चिकित्सा सुविधाओं के लिए करीब 100 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करनी होती थी.
स्वास्थ्य सेवा की कमी और सित्तिलिंगी में रहने वाले लोगों की स्थिति से परेशान, डॉक्टर दंपति ने एक साल के लिए बैकपैक करने और घाटी के एक लाख लोगों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने का फैसला किया.
इसे भी पढ़ें: World Health Day 2022: हमारा ग्रह, हमारी सेहत. जानें क्यों जलवायु संकट, एक स्वास्थ्य संकट है
1992 में, डॉ रेगी और डॉ ललिता ने घाटी में जनजातीय स्वास्थ्य पहल की स्थापना की और एक छोटी सी झोपड़ी से घाटी की पहली अस्पताल-सह-रोगी यानी होस्पिटल कम पेशंट यूनिट (hospital-cum-patient unit) इकाई शुरू की.
अपनी यात्रा के बारे में एनडीटीवी से बात करते हुए, डॉ रेगी जॉर्ज ने कहा,
इसलिए जैसे ही हमने पढ़ाई पूरी की, हमने गांधी ग्राम नामक जगह पर काम करना शुरू कर दिया, जो तमिलनाडु में मदुरै के पास है. यह गांधीवादी संस्था है और हमने वहां क्लीनिकल डॉक्टर के तौर पर काम किया. वहां हमारे पांच सालों ने हमें उन लोगों के संपर्क में आने में मदद की, जिन्होंने वास्तव में गांधी के साथ काम किया था. इसलिए, बहुत सारे काम गांधीजी से प्रेरित हैं. और पूरी चीज जिसका समुदाय स्वयं ध्यान रख सकता है वह असल में एक वास्तविक है. मैं और ललिता एक ऐसी जगह की तलाश में थे, जो हेल्थ केयर सुविधाओं से दूर हो. और इस तरह, एक छोटे से शोध के बाद हम सित्तिलिंगी तक पहुंचे, हमें इस जगह से प्यार हो गया, क्योंकि यह प्राकृतिक सुंदरता से भरा है और यह तकरीबन 95 फीसदी आदिवासियों से आबाद है.
डॉ रेगी ने आगे कहा कि जब वे घाटी में आए, तो उन्होंने महसूस किया कि कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं है, जिसके चलते लोग पीड़ित हैं. उन्होंने आगे कहा,
हमने जमीन का एक टुकड़ा लिया और एक झोपड़ी बनाई, जो घाटी का पहला अस्पताल बन गया.
जनजातीय स्वास्थ्य पहल का विस्तार कैसे हुआ?
तीन साल बाद, दोस्तों और कुछ अनुदानों के सहयोग से, डॉक्टर दंपत्ति ने एक बुनियादी ऑपरेशन थियेटर, लेबर रूम, नवजात देखभाल, आपातकालीन कक्ष और प्रयोगशाला के साथ दस बिस्तरों वाला अस्पताल बनाया.
आज जनजातीय स्वास्थ्य पहल का सस्ती बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करने का सपना सित्तिलिंगी घाटी और कालरायण पहाड़ियों के 33 गांवों में फैला हुआ है. यह एक ऐसा दृष्टिकोण है, जो आदिवासियों को अपनी मदद स्वयं करने में मदद करता है.
डॉ रेगी और डॉ ललिता का कहना है कि प्रभाव नाटकीय रहा है. डॉ ललिता रेगी कहती हैं,
पिछले कुछ सालों में, प्रसवपूर्व जांच के लिए आने वाली गर्भवती माताओं का अनुपात 11 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया है. जन्म के एक साल के भीतर मरने वाले शिशुओं की संख्या घटकर प्रति 1,000 जन्म पर 20 रह गई है. जब हम यहां आए थे, तो यह प्रति 1,000 जन्म पर 147 था. इसके साथ ही कुपोषण में 80 फीसदी की कमी आई है.
इसे भी पढ़ें: UNEP रिपोर्ट के अनुसार भारत जंगल की आग की बढ़ती घटनाओं वाले देशों में शामिल, बताए इसे रोकने के समाधान
कपल को सफलता कैसे मिली?
1996 में, इस पहल ने स्थानीय आदिवासी लड़कियों को स्वास्थ्य कार्यकर्ता, दाइयों और सहायक नर्सों के रूप में प्रशिक्षण देना शुरू किया. दंपति ने इन लड़कियों को अस्पताल में सामान्य समस्याओं के निदान और उपचार के लिए प्रशिक्षित किया और ऑपरेशन थिएटर में दंपति की सहायता की, प्रसव कराने, मरीजों की देखभाल करने और प्रसवपूर्व और बाल स्वास्थ्य जांच के लिए गांवों में जाने के लिए प्रशिक्षित किया.
सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की व्याख्या करते हुए डॉ ललिता रेगी ने कहा,
हर गांव जिसमें हम काम करते हैं, ने एक विवाहित महिला को नामांकित किया है, जिसे स्वास्थ्य सहायक के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है. उनके काम में अच्छे पोषण, स्वच्छता, प्रसव प्रथाओं और साधारण बीमारियों पर सलाह देना, गांव में अहम स्वास्थ्य घटनाओं पर रिकॉर्ड बनाए रखना और सभी सामुदायिक विकास कार्यों के लिए सुविधाकर्ता के रूप में कार्य करना शामिल है.
शिक्षा प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए, जनजातीय स्वास्थ्य पहल, हर महीने शिविरों का आयोजन करती है जहां स्वास्थ्य सहायक इकट्ठा होते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं. इन बैठकों में, वे अपने गांवों के स्वास्थ्य पर चर्चा करते हैं, गांव के सदस्यों के जन्म और मृत्यु की रिपोर्ट करते हैं, और अन्य प्रासंगिक जानकारी देते हैं.
डॉ ललिता ने यह भी कहा कि जनजातीय स्वास्थ्य पहल कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्रों में सभी गर्भवती महिलाओं और 5 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मासिक मोबाइल क्लीनिक संचालित करते हैं. उन्होंने कहा-
यह क्षेत्र में शिशु और मातृ मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने में सबसे आवश्यक कारक रहा है. पिछले 10 सालों से लगातार प्रसव के दौरान हमारी कोई मां नहीं मर रही है. इसके अलावा, हम 21 गांवों के लिए एक एम्बुलेंस सेवा भी चलाते हैं. जरूरत पड़ने पर मरीजों को जनजातीय अस्पताल ले जाया जा सकता है या सलेम और धर्मपुरी में टेरट्री केयर सेंटर्स में भेजा जा सकता है.
जनजातीय स्वास्थ्य पहल, जो दूसरों के लिए प्रेरणा बनी
डॉ. रेगी जॉर्ज और डॉ ललिता रेगी द्वारा किए गए सराहनीय कार्य ने बड़े शहरों के कई डॉक्टरों को उनकी पहल में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है. इस जोड़े की तरह जो शहर से चले गए और घाटी में लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया. एनडीटीवी से बात करते हुए, डॉ रवि कुमार मनोरनहन (मनोरंजन), ग्रामीण सर्जन, जनजातीय स्वास्थ्य पहल ने कहा,
10 साल पहले, अपनी कम कसी, शहर में अपनी आकर्षक नौकरी छोड़ने और डॉ रेगी और डॉ ललिता के साथ उनकी सेवाओं से जुड़ने का फैसला किया. उनके काम और जिस लगन के साथ वे यहां समुदाय की सेवा करते हैं, उसे देखकर मैंने और मेरी पत्नी ने भी उसी रास्ते पर चलने और लोगों की सेवा करने का फैसला किया. यह बहुत संतोषजनक है.
अन्य पहल और कार्यक्रम जो जनजातीय स्वास्थ्य पहल में शामिल हैं
जनजातीय स्वास्थ्य पहल ने न केवल आदिवासियों के स्वास्थ्य में बल्कि उनकी वित्तीय स्थिति और सामुदायिक कल्याण में भी सुधार किया है. इस पहल के तहत, डॉक्टर दंपति ने न केवल आदिवासी महिलाओं को अपने समुदाय को स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित किया है, बल्कि आदिवासी कला को पुनर्जीवित करने में भी मदद की है, जैविक किसानों का एक समाज बनाया है, जो आदिवासी समुदाय को सशक्त बनाने में मदद करता है, जिसे उन्होंने सेवा के लिए चुना है.
पहल के तहत कई कार्यक्रमों की व्याख्या करते हुए डॉ रेगी ने कहा,
आदिवासी स्वास्थ्य पहल स्वास्थ्य को अलग-थलग करके नहीं देखती है. जब कोई स्वास्थ्य के बारे में सोचता है, तो वे निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के बारे में सोचते हैं; वे लोग क्षेत्र के बारे में नहीं सोचते हैं. खुद की देखभाल करने वाले लोगों में बहुत बड़ी क्षमता है और यह कोई अकेली चीज नहीं है, इसे अर्थशास्त्र, भोजन, शिक्षा से जोड़ना होगा. और यही हमारी पहल ने मुख्य रूप से कवर किया है. जैविक खेती कार्यक्रमों के माध्यम से, हम घाटी के लोगों को बाजरा खाने के लिए राजी करने में सक्षम थे और हमारे लिए बाजरा एक बड़ी बात है, क्योंकि हमें लगता है कि पारंपरिक खाद्य पदार्थों पर वापस जाना ही एकमात्र तरीका है, जिससे एक समाज पोषक रूप से पर्याप्त और स्वतंत्र बन सकता है. हमने यहां लंबे समय से बाल कुपोषण और वयस्क कुपोषण नहीं देखा है, क्योंकि मुझे लगता है कि असली कुंजी डाइट को बदलना ही थी.
लगभग 30 साल पहले इस डॉक्टर दंपति के लिए इस फैसले की बदौलत सित्तिलिंगी घाटी, जो एक गरीब आदिवासी बस्ती थी, अंधविश्वास से ग्रस्त थी, अब एक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त आदिवासी समुदाय है.
भारत कैसे अधिक सित्तिलिंगी घाटियों का निर्माण कर सकता है और अधिक जनजातीय स्वास्थ्य देखभाल पहल के लिए रास्ते खोल सकता है, इस पर बात करते हुए डॉ रेगी जॉर्ज ने कहा,
मुझे नहीं लगता, हमें बुनियादी ढांचे पर ध्यान देने की जरूरत है. मुझे लगता है कि बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए सरकार के पास पर्याप्त पैसा है. हमें जिस मुख्य समस्या को दूर करने की आवश्यकता है, वह है डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में और देश के सबसे दूरस्थ जिलों में काम करने के लिए तैयार करना. हमें अधिक से अधिक युवाओं को मुख्यधारा से दूर होने और ऐसे क्षेत्रों या ग्रामीण क्षेत्रों की जरूरत और स्वास्थ्य देखभाल की मांग पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है.
इसे भी पढ़ें: जलवायु संकट: वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक खतरनाक क्यों है?
 
                     
                                     
																								
												
												
											

 
																	
																															 
									 
																	 
									 
																	 
									 
																	 
									 
																	 
									 
																	 
									 
																	 
                                                     
                                                                                     
                                                     
                                                                                     
                                                     
                                                                                     
                                                     
                                                                                     
                                                     
                                                                                     
														 
																											 
														 
																											 
														