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वर्ल्ड टॉयलेट डे 2023 की थीम का मकसद, 2030 तक सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल को में तेजी लाने पर फोकस करना

2030 तक सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स यानी सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में सात साल से भी कम का समय रह गया है, इसलिए वर्ल्ड टॉयलेट डे 2023 की थीम “बदलाव में तेजी लाने” पर केंद्रित है

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वर्ल्ड टॉयलेट डे 2023 की थीम का मकसद, 2030 तक सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल को हासिल करने के लिए 'बदलाव में तेजी लाने' पर फोकस करना
हमिंग बर्ड वर्ल्ड टॉयलेट डे 2023 का सिंबल यानी प्रतीक है

नई दिल्ली: क्या आप जानते हैं, दुनियाभर में करीब 3.5 अरब लोगों के पास आज भी सेफ टॉयलेट यानी सुरक्षित शौचालयों की सुविधा नहीं है और 41.9 करोड़ लोग वर्तमान में भी खुले में शौच करने को मजबूर है. यूनाइटेड नेशन वॉटर का कहना है कि एक “सेफ टॉयलेट” एक सुरक्षित तरीके से मैनेज किया सैनिटेशन सिस्टम है, जिसका मतलब है एक ऐसा टॉयलेट जो दूसरे घरों के साथ साझा नहीं किया जाता हो, जो या तो साइट पर ह्यूमन वेस्ट यानी मानव अपशिष्ट को ट्रीट या डिस्पोज करता है, इसे खाली करने और साइट से बाहर ट्रीट करने के लिए सेफ तरीके से स्टोर करता है, या ये किसी फंक्शनिंग सीवर और ट्रीटमेंट प्लांट से कनेक्ट होता है.

हालांकि, दुनिया 2030 तक सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (SDG) 6 – “सभी के लिए पानी और सेनिटेशन यानी स्वच्छता की उपलब्धता और सस्टेनेबल मैनेजमेंट सुनिश्चित करने” को पूरा करने के अपने लक्ष्य से काफी दूर है. वॉटर सप्लाई, सेनिटेशन और हाइजीन के लिए WHO/UNICEF के ज्‍वाइंट मॉनिटरिंग प्रोग्राम (JMP) 2023 के मुताबिक, प्रगति की वर्तमान दर को देखते हुए 2030 में 3 अरब लोग सुरक्षित शौचालयों (safe toilets) के बिना, 2 अरब लोग सुरक्षित पेयजल (safe drinking water) के बिना और 1.4 अरब लोग बुनियादी स्वच्छता सेवाओं (basic hygiene services) के बिना रह रहे होंगे.

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वर्ल्ड टॉयलेट डे 2023

वर्ल्ड टॉयलेट डे (World Toilet Day), हर साल 19 नवंबर को मनाया जाता है, जो दुनियाभर में सेनिटेशन क्राइसिस यानी स्वच्छता संकट से निपटने के लिए कदम उठाने के बारे में लोगों को जागरूक करता है. ये 2013 से एक सालाना संयुक्त राष्ट्र उत्सव रहा है, लेकिन पहली बार वर्ल्ड टॉयलेट डे 2001 में विश्व शौचालय संगठन (World Toilet Organization) द्वारा मनाया गया था. संयुक्त राष्ट्र ने शौचालयों से जुड़ी वर्जनाओं को तोड़ने में मदद करने और सभी के लिए स्वच्छता यानी सैनिटेशन को ग्लोबल डेवलपमेंट की प्राथमिकता बनाने के लिए कदम उठाया.

2030 तक सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स यानी सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में 7 साल से भी कम का समय बचा है, इसलिए वर्ल्ड टॉयलेट डे 2023 की थीम “Accelerating Change” रखी गई जो बदलाव में तेजी लाने पर केंद्रित है. इस थीम के जरिए पूरी दुनिया से SDG 6 के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तेजी से कार्रवाई करने और विकास की दर को ट्रैक पर लाने की बात कही की गई है. यह सरकारों और बड़े संस्थानों से अपने वादों को पूरा करने की गुजारिश करती है.

इसीलिए, हमिंगबर्ड (Hummingbird) को वर्ल्ड टॉयलेट डे 2023 के प्रतीक (symbol) के रूप में चुना गया है. एक बहुत ही मशहूर पुरानी कहानी में जंगल की आग को बुझाने में मदद करने के लिए एक हमिंग बर्ड को अपनी चोंच में पानी की बूंदें ले जाकर आग बुझाने में मदद करने की बात कही गई है. संयुक्त राष्ट्र जल (UN Water) कहता है,

वह (हमिंग बर्ड) एक बड़ी समस्या से निपटने के लिए कोशिश करने का एक शक्तिशाली प्रतीक है – चाहे वह कोशिश कितनी भी छोटी क्यों न हो.

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आप कैसे इस बदलाव में तेजी ला सकते हैं

आप भी हमिंग बर्ड बनें और सेनिटेशन क्राइसिस यानी स्वच्छता संकट को हल करने में मदद करें. एक कैंपेन फैक्टशीट में, UN वॉटर ने सैनिटेशन एक्शन यानी स्वच्छता कार्रवाई के लिए लोगों से प्रतिबद्ध होने का आग्रह किया है. जिसमें निम्नलिखित बातें शामिल है:

  • शौचालय, पानी और मासिक धर्म (menstruation) के बीच जो महत्वपूर्ण संबंध है उसके बारे में खुलकर बात करके वर्जनाओं को तोड़ें.
  • फ्लश सेफ: लीक हो रहे पानी और वेस्ट पाइपों को ठीक करें, भरे हुए सेप्टिक टैंकों को खाली करें और बायो सॉलिड डंपिंग की रिपोर्ट करें.
  • फूड वेस्ट, ऑइल, मेडिसिन और केमिकल टॉयलेट या नालियों में कभी न डालें.
  • अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखकर पानी और स्वच्छता सुविधाओं (sanitation facilities) में सुधार के लिए बजट बढ़ाने के बारे में दबाव बनाएं.

भारत में स्वच्छता (Sanitation In India)

यूनिसेफ (UNICEF) के मुताबिक, 2015 में, भारत की करीब आधी आबादी की यानी लगभग 56.8 करोड़ लोगों की पहुंच शौचालयों तक न होने की वजह से उन्हें खेतों, जंगलों, जल निकायों या दूसरे सार्वजनिक स्थानों पर शौच करने की शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा. खुले में शौच करने वाले दक्षिण एशिया के करीब 90 प्रतिशत लोग और दुनिया के 1.2 अरब लोगों में से आधे अकेले भारत में हैं.

हालांकि, पिछले कुछ सालों में, भारत ने स्वच्छता सुविधाएं (sanitation facilities) प्रदान करने और देश भर में खुले में शौच करने की प्रथा को खत्म करने की दिशा में तेजी से प्रगति की है. भारत में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या में अनुमानित तौर पर 45 करोड़ लोगों (2019) की कमी आई है, जो देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है.

भारत कई दशकों से सुरक्षित स्वच्छता यानी सेफ सेनिटेशन की दिशा में काम कर रहा है. 1986 में, केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (Central Rural Sanitation Programme – CRSP), पहला राष्ट्रव्यापी केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शुरू किया गया था. बाद में 1999 में, खुले में शौच को 2017 तक पूरी तरह खत्म करने के मकसद से संपूर्ण स्वच्छता अभियान (Total Sanitation Campaign – TSC) शुरू किया गया, जिसके बाद संपूर्ण स्वच्छता अभियान को और मजबूत बनाने के लिए निर्मल ग्राम पुरस्कार, संपूर्ण स्वच्छता आंदोलन योजना और कई अन्य योजनाएं शुरू की गईं.

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2012 में, केंद्र ने 2022 तक ग्रामीण घरों में 100 प्रतिशत शौचालयों की पहुंच प्रदान करने के लक्ष्य के साथ एक और स्वच्छता कार्यक्रम (sanitation programme) – निर्मल भारत अभियान (NBA) शुरू किया. लेकिन यह निर्मल भारत अभियान इतना असरदार नहीं रहा और जैसे परिणाम की इससे उम्मीद की गई थी वैसा रिजल्ट ये नहीं दे पाया.

2014 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने निर्मल भारत अभियान को स्वच्छ भारत मिशन (SBM) में बदल दिया और इसके दो सब-मिशन (sub-missions) – स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) और स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) पेश किए. सरकार का लक्ष्य 2 अक्टूबर, 2019 को महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती तक भारत को स्वच्छ और खुले में शौच से मुक्त (Open Defecation Free – ODF) घोषित करना था.

इस अभियान की शुरुआत में भारत को खुले में शौच से मुक्त (ODF) बनाने के लिए शहरी क्षेत्रों में 67 लाख व्यक्तिगत घरेलू शौचालय और 5 लाख सामुदायिक शौचालय (community toilets) बनाने का लक्ष्य रखा गया था. इसके अलावा, ग्रामीण भारत के लिए, जहां सेनिटेशन कवरेज मात्र 38.70 प्रतिशत था, सरकार का लक्ष्य इसे 100 प्रतिशत तक लाना था.

सरकार के मुताबिक, स्वच्छ भारत मिशन (SBM) का लक्ष्य हासिल कर लिया गया है. सरकार का दावा है कि 10 करोड़ से ज्यादा शौचालयों के निर्माण के साथ ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाने का लक्ष्य पूरा हो चुका है. शहरी क्षेत्रों में 58.99 लाख के लक्ष्य से ज्यादा 63.04 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है. देश के 4,355 शहर खुले में शौच से मुक्त बन चुके हैं.

यह सही है कि हमने शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली है, लेकिन खास बात यह सुनिश्चित करना है कि सभी लोग उनका समझदारी से इस्तेमाल भी करें. इन प्रयासों को आगे बनाए रखने और प्रॉपर वेस्ट मैनेजमेंट पर फोकस करने का समय आ गया है ताकि सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के जरिए शौचालय का कवरेज बढ़ाने और लोगों की स्वच्छता सुविधा तक पहुंच में सुधार लाने में जो कामयाबी हासिल की है उसका फायदा उठाया जा सके.

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