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मानसिक स्वास्थ्य

अवसाद और डिप्रेशन जैसे मैंटल हेल्‍थ इशू से ग्रस्‍त बच्‍चे को इस तरह हैंडल करें प‍ैरेंट्स

डॉ अमित सेन, बाल और किशोर मनोचिकित्सक ने कहा, ‘याद रखें, बच्चे के बिहेव में बदलाव जैसे मिजाज बदलना और गुस्सा आना, आंतरिक उथल-पुथल का एक संकेत है.’

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बाल और किशोर मनोचिकित्सक डॉ. अमित सेन ने बताया कि माता-पिता कैसे मैंटल हेल्‍थ से जुड़े मुद्दों पर अपने बच्‍चों का साथ दे सकते हैं.
Highlights
  • पैरेंट्स को बच्चों के लिए भावनात्मक रूप से सुरक्षित स्थान बनाना चाहिए: डॉ. अमित सेन
  • बच्चों को न्याय किए जाने के डर के बिना अपनी बात रखने में सक्षम होना चाहिए: डॉ सेन
  • 'अगर बच्चा भावनात्मक समय से गुजर रहा है तो तो अपनी उम्मीदों को कम करें'

नई दिल्ली: डॉ. अमित सेन, बाल और किशोर मनोचिकित्सक कहते हैं, ‘मेरे क्‍लाइंट में से एक 13 साल का लड़का है, जिसे अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) का है और वह चीजें सीखने में सक्षम नहीं है. वह एक बहुत ही अच्‍छे स्कूल में पढ़ता है और फुटबॉल, ताइक्वांडो और संगीत में भी बेहद अच्छा है. लेकिन, COVID-19 महामारी के कारण, जब क्‍लासेज ऑनलाइन हो गईं, तो उसे स्कूल और दोस्तों से उसी तरह का साथ नहीं मिला जो पहले मिलता था. कुछ महीनों के अंदर, उसके व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देने लगा- जैसे-मिजाज में बदलाव, भावनात्मक परिवर्तन और गुस्‍सैल होना. हमें जल्द ही एहसास हुआ कि वह डिप्रेशन में था’.

बच्‍चे के पैरेंट्स परिवर्तनों को नोटिस करने और अपने बच्‍चे की ऊर्जा को मैंनेज करने के तरीके खोजने में मदद करने के लिए तत्पर थे. उन्‍होंने उसे एक पालतू जानवार लाकर दिया, म्‍यूजिक में ऑनलाइन क्‍लासेज की व्यवस्था की. चूंकि लड़के को स्कूल भेजना जारी रखना बेहद मुश्किल था, इसलिए माता-पिता ने कुछ समय के लिए क्‍लासेज कैंसिल करने और व्यक्तिगत शिक्षण का ऑप्‍शन चुना.

डॉ. सेन ने कहा, बच्‍चे, माता-पिता और एक प्रोफेशनल के प्रयासों से, किशोर अब बेहतर कर रहा है. इसी तरह, हर बच्चा- चाहे वह एक छोटा लड़का हो, या फिर किशोर, को मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से निपटने के लिए परिवार के साथ की जरूरत होती है.

इन पांच टिप्‍स के जरिए माता-पिता मैंटल हेल्‍थ से जुड़े बच्चों की मदद कर सकते हैं.

जागरूकता और स्वीकृति

डॉ. सेन ने कहा, कई बार जब बच्चे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों से गुजरते हैं, तो उनकी दैनिक लय जैसे व्यवहार, मनोदशा, नींद और भूख बदल जाती है। आम तौर पर बोलते हुए, विशेष रूप से व्यवहार में बदलाव जैसे मनोदशा या क्रोध के प्रकोप को व्यवहारिक तरीके से निपटाया जाता है। मतलब उन्हें बुरे व्यवहार के रूप में देखा जाता है और विशेषाधिकारों को छीनकर, फटकार, आलोचना, डांट और कभी-कभी उन्हें मारकर बच्चे को अनुशासित करने का प्रयास किया जाता है। इससे यह बदतर हो जाता है, डॉ सेन ने कहा।

इसलिए सबसे पहले यह जान लें कि बच्चे के व्यवहार में बदलाव आंतरिक अशांति का संकेत है। माता-पिता को भी जागरूक होने की आवश्यकता है कि तनाव, अनिश्चितता, भय, COVID प्रेरित चिंता और स्कूलों और दिनचर्या में व्यवधान के कारण बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों में वृद्धि हुई है।

भावनात्मक रूप से सुरक्षित स्थान बनाएं

डॉ. सेन भावनात्मक रूप से कठिन दौर से गुजर रहे बच्चों से कुछ अपेक्षाएं रखने को कम करने की सलाह देते हैं. न केवल शिक्षाविदों में बल्कि दैनिक दिनचर्या की चीजों में भी उम्मीदें जैसे उठना, ब्रश करना, स्नान करना और कपड़े बदलना.

हो सकता है कि बच्चा बैड से उठना न चाहे या केवल जंक फूड खाना चाहता है. हालांकि, बच्चे जंक फूड मांग रहे होंगे, क्योंकि वे अब रेगुलर खाना नहीं खा सकते, क्योंकि उनकी भूख कम हो गई है. वे आरामदेह भोजन की तलाश में हैं जो चिंता को कम करने और मूड चेंज करने में मदद करता है. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि आप उनकी हर इच्‍छा को पूरा करें, बल्कि उनका स्‍पोर्ट करने की कोशिश करें. अपने बच्चे को चीजों को करने के लिए प्रेरित करने के बजाय परिस्थितियों से उबरने के लिए टाइम और जगह दें. आपका बच्चा जान-बूझकर कोई खास तरीके से पेश नहीं आ रहा है. डॉ. सेन ने कहा कि बच्चे भी यह सोचकर बहुत अपराध बोध से गुजरते हैं कि वे दूसरों को नीचा दिखा रहे हैं.

सुनने की आदत डालें

भावनात्मक रूप से सुरक्षित स्थान बनाने का मतलब ये भी है कि बच्चे को न्याय किए जाने, आलोचना किए जाने के डर के बिना व्यक्त करने देना और यह सोचने से बचें कि ‘मेरे माता-पिता हल या भाषण देंगे’. इस मुद्दे पर विस्तार से बात करते हुए डॉ. सेन ने कहा, जैसे ही बच्चे अपनी चुनौतियां बताना शुरू करते हैं, पैरेंट्स तुरंत हल तलाशने लगते है. वह अच्छी जगह से आता है, लेकिन याद रखें कि बच्चा सहानुभूति की तलाश में हैं. अपने दिल से सुनें, जानकारी को और भावना को समझें.

‘तुम, मैं, और हम’ का दृष्टिकोण अपनाएं

डॉ. सेन की राय है कि न तो पैरेंट्स और न ही मैंटल हेल्‍थ प्रोफेशनल यह तय कर सकते हैं कि बच्चे के लिए अच्छा क्या है. कोई भी फैसला बच्चे के साथ मिलकर ही लेना होगा. उदाहरण के लिए, यदि माता-पिता अपने बच्चे के लिए बाहर जाने का प्‍लान बना रहे हैं, तो उन्हें ऑप्‍शन देना चाहिए जैसे, क्या आप किसी पार्क में जाना चाहते हैं, अपने दोस्‍त के घर या दादी के घर जाना चाहते हैं.

डॉ. सेन ने कहा, 5 या 6 साल की उम्र के बच्चे, अपने विचारों को शब्दों में बयां नहीं कर पोतते, लेकिन फिर भी वे चुन सकते हैं. यदि वे चुनाव करते हैं, तो वे बहुत अधिक सशक्त महसूस करेंगे. आप बच्चे से पूछ सकते हैं, ‘आपको क्या लगता है कि आपकी क्‍या मदद करेगा?’ या ‘हम आपकी कैसे मदद कर सकते हैं?’ उदाहरण के लिए, एक बच्चा मोबाइल पर बहुत अधिक समय बिता रहा है. ऐसे में बच्‍चे से अपने संबंध के आधार पर, आप कह सकते हैं, ‘मैंने देखा है कि जब आप स्क्रीन पर घंटों बिताते हैं, तो आप सुस्त हो जाते हैं. आप इसके बारे में क्या सोचते हैं?’ और फिर मिलकर समाधान निकालने की कोशिश करें.

न करें तुलना, धैय बनाएं रखें

डॉ. सेन ने कहा, किसी भी मानसिक बीमारी का इलाज एक यात्रा की तरह होता है, जिसमें मंजिल तक पहुंचने के लिए धैर्य की ज़रूरत होती है. इस प्रोसेस में, डॉ. सेन छोटे और प्राप्त करने योग्य लक्ष्य निर्धारित करने का सुझाव देते हैं, लेकिन परिवर्तनों को अपनाने की सलाह भी देते हैं. उदाहरण के लिए, एक बच्चा संगीत सीखना चाहता है क्योंकि इससे उसे शांति मिलती है, लेकिन वह रेगुलर क्‍लास लेने में सक्षम नहीं हो सकता है. ऐसे में उसको डांटने की बजाय कहें, कभी-कभी क्‍लास लेना सही है. अगर ये युक्ति काम नहीं करती, तो दूसरा उपाय तलाशें.

डॉ. सेन ने कहा, बच्चे जब भावनात्मक कठिनाइयों से गुजर रहे होते हैं, उस समय इस बात का विशेष असर होता है कि उन्हें कैसे समझा जा रहा है और उन्‍हें कैसा माहोल दिया जा रहा है. उदाहरण के लिए, ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान, कुछ बच्चों को ध्यान लगाने में काफी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ सकता है. बदले में, टीचर शिकायत करेंगे, माता-पिता उन्‍हें डाटेंगे, और देर-सवेर आपको एहसास होगा कि बच्चा भावनात्मक स्थिति या अवसाद या चिंता जैसे विकार से पीड़ित है. चिंता इस बात की है कि बच्चा इन नई परिस्थितियों के अनुकूल किस तरह हो सकता है.

Disclaimer: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी देती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सक की राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने डॉक्टर से सलाह लें. NDTV इस जानकारी की जिम्मेदारी नहीं लेता है.

अगर आपको मदद की जरूरत है या किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो ऐसा करता है, तो कृपया अपने निकटतम मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करें. हेल्पलाइन:
आसरा: 91-22-27546669 (24 घंटे)
स्‍नेहा फाउंडेशन: 91-44-24640050 (24 घंटे)
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