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मिलिए एक ट्रांसवुमन के. शीतल नायक से, जिन्होंने ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ी

के. शीतल नायक, एक ट्रांसजेंडर वूमन, जिसने पांडिचेरी में एलजीबीटीक्यू समूह के अधिकारों के लिए एससीओएचडी (SCOHD) एक गैर-सरकारी संस्था की शुरुआत की.

मिलिए एक ट्रांसवुमन के. शीतल नायक से, जिन्होंने ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ी
मैं एक लड़के के रूप में पैदा हुआ था और जब मैं गोवा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, तब मुझे एहसास हुआ कि मैं एक महिला हूं.

नई दिल्ली: के. शीतल नायक जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे तब उन्हें एहसास हुआ कि वह एक पुरुष नहीं बल्कि एक महिला हैं, और उस पल के बाद से शीतल के लिए कुछ भी समान नहीं था.

पांडिचेरी में जन्मी एवं पली-बढ़ी एक ट्रांस-महिला के. शीतल नायक कहती हैं “मैं एक लड़के के रूप में पैदा हुआ था और जब मैं गोवा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी, तब मुझे एहसास हुआ कि मैं एक महिला हूं. शीतल का कहना है कि उसके परिवार को जब यह पता चला तो उन्होंने मुझे स्वीकार नहीं किया और तब मुझे एहसास हुआ कि एक ट्रांसजेंडर को समाज में रहने के लिए कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. शीतल नायक ने कहा कि कॉलेज के चार साल बाद जब मैंने अपनी पहचान के बारे में अपने माता-पिता को बताया तो मुझे स्वीकार नहीं किया गया और इसीलिए मैंने घर से बाहर जाने का फैसला किया.

जल्द ही, शीतल को पता चला कि एलजीबीटीक्यू समुदायों के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है. ऐसा उसे तब पता चला जब एक शाम शीतल ने देखा कि 2 पुरुष मिलकर एक अन्य व्यक्ति को पीट रहे थे क्यूंकि वह दोनों पुरुष उस व्यक्ति के द्वारा दी गई यौन सेवाओं का भुगतान नहीं करना चाह रहे थे. इसके बाद शीतल को यह भी पता चला कि पांडिचेरी में अन्य समलैंगिक समूह और ट्रांसजेंडर लोग हैं जोकि बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है. इसके बाद शीतल ने इंजीनियरिंग छोड़ने और अपने समुदाय के लिए कुछ करने का फैसला किया.

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1998 में शीतल ने जमीनी स्तर से काम करना शुरू किया. उसने एलजीबीटीक्यू समुदायों के सदस्यों के साथ सुरक्षित स्थानों पर समूह चर्चा और मिलने की व्यवस्था की शुरुआत की. ट्रांसजेंडर लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बात करते हुए शीतल ने कहा,

ट्रांसजेंडरों के सामने बहुत सी चुनौतियां होती हैं. हमारी चुनौतियां परिवार से शुरू होती हैं, हमारी अपनी मां हमें पसंद नहीं करती हैं, हमारे परिवारवाले हमें स्वीकार नहीं करना चाहते हैं. स्कूलों में, हमें कोई मान्यता नहीं मिलती है, हमारे लिए कोई पाठ्यक्रम नहीं है. हमें दो ही विकल्प मिलते हैं, या तो भीख मांगे या फिर सेक्स वर्कर बन जाएं. हमारे साथ दोहरा भेदभाव किया जाता है और हमें समाज के लिए एक कलंक समझा जाता है.

शीतल के इसी जुनून ने उन्हें 2003 में एससीओएचडी (Sahodaran Community Oriented Health Development) सोसाइटी बनाने के लिए प्रेरित किया. सहोदरान, जिसका अर्थ मलयालम में भाई है, की रचना एलजीबीटी (समलैंगिक, गे और ट्रांसजेंडर) और एमएसएम समुदाय (पुरुष जो पुरुषों के साथ यौन संबंध रखते हैं) के लोगों को एक सुरक्षित स्थान देने के उद्देश्य से की गई थी. अपने काम और अपने संगठन के क्षेत्र के बारे में बताते हुए, शीतल ने कहा,

22 साल तक मैंने समाज के लिए काम किया. मैंने गौरव के साथ पांडिचेरी में एलजीबीटीक्यू समूह के लिए राज्य में ट्रांसजेंडर फेडरेशन की शुरुआत की. आज, ट्रांसजेंडर फेडरेशन में 15 स्वयं सहायता समूह हैं, जोकि समुदाय में ट्रांसजेंडरों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए काम करते हैं. एससीओएचडी एलजीबीटी और एमएसएम के लिए सहायक संघ के रूप में भी काम करता है, और इन समूहों के लिए स्वास्थ्य संवर्धन और शिक्षा प्रदान करने में मदद करता है. चूंकि इन समूहों के पास उचित स्वास्थ्य देखभाल की बहुत कम संभावना है इसीलिए एससीओएचडी इन समूहों को स्वास्थ्य परामर्श, उपचार, मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित परामर्श प्रदान करने की कोशिश करता है.

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इन सबके अलावा, एससीओएचडी शिक्षा को भी बढ़ावा देता है और समुदाय को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करता है ताकि समुदाय अपनी वर्तमान स्थिति से ऊपर उठ सके और कुशल रोजगार प्राप्त कर सके. शीतल का कहना है कि एससीओएचडी केवल एक स्वास्थ्य क्लिनिक ही नहीं बल्कि उससे काफी अधिक है, यह अभिव्यक्ति, समर्थन और शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक जगह है, एनजीओ के दिन-प्रतिदिन के कामकाज की व्याख्या करते हुए, वह आगे कहती हैं,

एससीओएचडी परिवार परामर्श, एचआईवी/एड्स, मनो-यौन, कानूनी सहायता, घरेलू, शारीरिक और होमोफोबिक हिंसा से सुरक्षा आदि सुविधाएं भी समाज में प्रदान करता है. हमने एक ऐसी जगह बनाई है जहां कोई भी आकर किसी से भी बात कर सकता है, समान विचारधारा वाले लोगों से मिल सकता है और अपने विचार साझा कर सकता है.

आगे, एक मज़बूत अंतर-समावेशी समाज का निर्माण

शीतल का कहना है कि एक बार जब परिवार ट्रांसजेंडरों को स्वीकार कर लेता है, तो चीजें और अधिक आसान हो जाएंगी. उसने कहा,

समावेशिता की शुरुआत परिवार से होती है. अगर हमारे अपने माता-पिता हमें और हमारी अपनी पहचान को स्वीकार करते हैं, तो हम ट्रांसजेंडरों को कोई समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा.

शीतल ने यह कहकर अपनी बात समाप्त की की कैसे वह भविष्य में अपने इस एनजीओ के लक्ष्यों को पूरा करेंगी.

हमारी पूरी संस्था दान से चलती है. हम समान विचारधारा वाले लोगों के साथ काम कर रहे हैं और ट्रांसजेंडरों के लिए एक सुरक्षित जगह बना रहे हैं. निकट भविष्य में एससीओएचडी, अपने कार्यों का और अधिक विस्तार करते हुए जरूरतमंदों के सिर एक छत उपलब्ध कराने की उम्मीद करता है. एससीओएचडी, कार्यस्थलों में होने वाले भेदभावों जैसों मुद्दों पर भी काम करना चाहता है ताकि सब भेदभाव मिट सके और सब एक साथ मिलकर काम करें. यह सब उन्हें आजीविका कमाने के साथ-साथ समाज में स्वीकृति दिलाएगा और उन्हें सुरक्षित महसूस कराने की संभावना भी प्रदान करेगा. हमारा लक्ष्य है कि सभी के लिए न्याय और समानता हो, भारतीयों के इस अल्पसंख्यक समूह को देखने के तरीके को बदलें और इसके सदस्यों को सशक्त बना सकें ताकि वह समाज में अपनी पहचान के साथ जी सकें.

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NDTV – Dettol have been working towards a clean and healthy India since 2014 via the Banega Swachh India initiative, which is helmed by Campaign Ambassador Amitabh Bachchan. The campaign aims to highlight the inter-dependency of humans and the environment, and of humans on one another with the focus on One Health, One Planet, One Future – Leaving No One Behind. It stresses on the need to take care of, and consider, everyone’s health in India – especially vulnerable communities – the LGBTQ populationindigenous people, India’s different tribes, ethnic and linguistic minorities, people with disabilities, migrants, geographically remote populations, gender and sexual minorities. In wake of the current COVID-19 pandemic, the need for WASH (WaterSanitation and Hygiene) is reaffirmed as handwashing is one of the ways to prevent Coronavirus infection and other diseases. The campaign will continue to raise awareness on the same along with focussing on the importance of nutrition and healthcare for women and children, fight malnutrition, mental wellbeing, self care, science and health, adolescent health & gender awareness. Along with the health of people, the campaign has realised the need to also take care of the health of the eco-system. Our environment is fragile due to human activity, which is not only over-exploiting available resources, but also generating immense pollution as a result of using and extracting those resources. The imbalance has also led to immense biodiversity loss that has caused one of the biggest threats to human survival – climate change. It has now been described as a “code red for humanity.” The campaign will continue to cover issues like air pollutionwaste managementplastic banmanual scavenging and sanitation workers and menstrual hygiene. Banega Swasth India will also be taking forward the dream of Swasth Bharat, the campaign feels that only a Swachh or clean India where toilets are used and open defecation free (ODF) status achieved as part of the Swachh Bharat Abhiyan launched by Prime Minister Narendra Modi in 2014, can eradicate diseases like diahorrea and the country can become a Swasth or healthy India.