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मानसिक स्वास्थ्य

COVID-19 के दौरान बच्चों की मैंटल हेल्‍थ कैसे सुनिश्चित करें

डॉ. अमित सेन, बाल और किशोर मनोचिकित्सक ने उन लक्षणों के बारे बताया, जो पैरेंट्स को यह जानने में मदद करेंगे कि उनके बच्चे तनाव से गुजर रहे हैं या नहीं

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COVID-19 के दौरान बच्चों की मैंटल हेल्‍थ कैसे सुनिश्चित करें
Highlights
  • COVID-19 की वजह से बच्चे करीब से तबाही देख रहे हैं: डॉ. सेन
  • 'बच्चे खुद को अभिव्यक्त कर सकें इसलिए उनके लिए एक सुरक्षित स्थान बनाएं'
  • 'बच्चों के सामने मृत्यु के बारे में बात करते समय संयमित और सम्मानजनक रहें'

नई दिल्ली: COVID-19 महामारी ने बच्चों को एक साल से अधिक समय से स्कूल से दूर कर दिया है. महामारी न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरा लेकर आई, बल्कि यह बच्चों के लाइफस्‍टाइल में बड़े बदलाव भी लेकर आई. विशेषज्ञों के अनुसार, सामाजिक अलगाव, शून्य शारीरिक गतिविधियां, खराब रूटिन ने बच्चों में तनाव, निराशा, भय, शोक, चिंता और अवसाद को जन्म दिया है. यह जानने के लिए कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए और बच्चों को COVID-19 और लॉकडाउन के प्रभावों से कैसे दूर रखा जाए, NDTV ने डॉ. अमित सेन, चाइल्ड एंड अडोलेसेंट साइकियाट्रिस्ट और निदेशक तथा दिल्ली स्थित चिल्ड्रन फर्स्ट के सह-संस्थापक से बात की.

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NDTV: हम घर पर बच्चों के लिए एक इमोशनल सेफ जोन कैसे बना सकते हैं?

डॉ. अमित सेन: दूसरी लहर पहली लहर से बहुत अलग रही है. पहली लहर के दौरान COVID हमसे थोड़ा दूर था. उस समय, हमने मास्क, हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग के सभी नियमों का पालन किया, हम मान सकते हैं कि हम सुरक्षित थे. हालांकि, दूसरी लहर में वास्तव में हर घर में कोविड आ चुका था. इसने सभी बाधाओं को तोड़ दिया है. मौतों और तबाही में वृद्धि हुई है और बच्चों ने इसे बहुत करीब से देखा है. यह स्थिति को दर्दनाक बनाता है. यह स्थायी प्रभाव से उनके भावनात्मक संतुलन को गहरा नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए, हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि यह बीतने वाला चरण नहीं है और जैसे ही COVID जाएगा पूरी तरह से नहीं जाएगा. अभी हमारे बच्चों के साथ क्या हो रहा है, इसका जायजा लेना बहुत जरूरी है, क्योंकि जिस चीज से हमें सावधान रहना था, वह अब कुछ ऐसी हो गई है जिससे लोग भयभीत हो गए हैं कि कोविड क्या कर रहा है. मुझे लगता है कि एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होना चाहिए, जो किसी प्रकार के व्यक्तिगत नुकसान से प्रभावित हो. इसलिए, चिंता और भय पहली चीजें हैं, जिनसे हमें निपटना है. बच्चे अक्सर एक निश्चित तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं- भय से कांपने से लेकर घबराहट या निराश होने तक.

लॉकडाउन का एक अतिरिक्त कारक है. कोविड के चलते बच्‍चों की भलाई और विकास के लिए जरूरी चीजों का अभाव हो गया है.

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NDTV: माता-पिता को यह समझने के लिए किन लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए कि उनके बच्चे किसी तनाव से गुजर रहे हैं?

डॉ. अमित सेन: पहली चीज जो परेशान करती है वह है नेचुरल रिदम. सोने की आदतें बदल चुकी हैं. इससे बचने के लिए बच्‍चे कुछ नहीं कर पाते, क्योंकि उनके पास परेशान करने वाले विचार हैं, बुरे सपने हैं और विशेष रूप से किशोरों के बीच बहुत सहकर्मी समूह गतिविधियां रात में ही होती हैं. इसके अलावा, भूख खत्‍म हो रही है, वह हर समय जंक फूड की मांग कर रहे हैं और आप उनके मूड को भी तेजी से बदलते हुए देख रहे हैं. पुराने लोग अन्‍य तरीके तलाश रहे हैं, राहत के लिए वे शराब या अन्‍य मादक पदार्थ ले रहे होंगे. इस दौरान स्क्रीन की लत एक बड़ी समस्या बन जाती है. इसके अलावा, छोटे बच्चे अक्सर पेट दर्द या मतली या सुस्ती की शिकायत करते हैं. ये सभी संकेत हैं. जब ये एक साथ जुड़ते हैं और आप पाते हैं कि आपका बच्चा मूड, व्यवहार, प्राकृतिक लय, रिश्तों के टूटने, अपने दोस्तों के छूटने जैसे विभिन्न आयामों से प्रभावित हो रहा है- तो यही समय है कि चिंता करना शुरू करें और देखें वास्तव में उनकी आंतरिक दुनिया में क्या हो रहा है.

कई बार बच्चे खुद को व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं, शायद इसलिए कि वे कुछ भावनाओं को पहचान नहीं पाते हैं या कभी-कभी उन्हें लगता है कि उनकी बात कोई सुन नहीं रहा है, या उस समय जो वे महसूस कर रहे हैं उसके लिए उनका मजाक बनाया जाता जाता है. ये कुछ चीजें हैं जो बच्चों को यह साझा करने से रोकती हैं कि वे क्या कर रहे हैं. यह महत्वपूर्ण है कि वे अपनी भावनाओं को साझा करें और इसलिए उनके पास यह साझा करने के लिए एक सुरक्षित स्थान होना चाहिए.

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NDTV: बच्चों के बीच स्क्रीन टाइम को कैसे कंट्रोल करें?

डॉ. अमित सेन: बच्‍चों पर अपने नियम और सीमाएं थोपने से काम नहीं चलने वाला है, खासकर बड़े बच्चों के साथ. ऐसे में वे विद्रोह करने लगते हैं, क्योंकि वे पहले से ही पीड़ित होते हैं. तो, सबसे अच्छी बात यह है कि अपने बच्चों के साथ बैठकर देखें कि वे अपने स्क्रीन टाइम का उपयोग कैसे कर रहे हैं. स्क्रीन इन दिनों जरूरी है क्योंकि शिक्षा ऑनलाइन हो रही है, सारा मनोरंजन स्क्रीन पर है, सामाजिक जुड़ाव स्क्रीन के माध्यम से है. तो, आपको बैठकर इसे तोड़ना होगा और बच्चों को ये कहकर रोकना होगा कि वे एक दिन में कितने घंटे स्क्रीन का उपयोग करेंगे. यह युवाओं को इस बात से भी अवगत कराता है कि वे कितना स्क्रीन टाइम यूज कर रहे हैं. अपने युवा दोस्‍त के साथ फोन के इस्‍तेमाल पर चर्चा करें और पूछें, ‘क्या आपको लगता है कि स्क्रीन पर कई घंटे बिताना ठीक हैं’.

जब आप अपने बच्‍चों को फोन से दूर रखने का फैसला करते हैं, तो सवाल यह है कि वे इसके बजाय क्या करते हैं? वे अपने घर पर क्या कर सकते हैं, जो दिलचस्प है और जिसका अर्थ, आनंद, भावनाओं के संदर्भ में उनके लिए उपयोगी हो? ऐसे में पुरानी तस्वीरें आपकी मदद कर सकती हैं, जिन्हें आप उनके साथ देख सकते हैं, कुछ पुरानी किताबें, कुछ पुराने बोर्ड गेम या कहानियां बता सकते हैं कि यह पहले कैसे हुआ करता था. इससे बच्चों को पहचान की भावना प्राप्त करने में मदद मिलेगी जो महामारी के कारण छीन गई हैं.

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NDTV: तनाव से निपटने में बच्चों की मदद कैसे करें?

डॉ. अमित सेन: इसके दो पहलू हैं. एक, अगर बच्चे ने माता-पिता या दादा-दादी या शायद चाचा या चाची जैसे किसी करीबी को खो दिया है जो उन्हें बहुत प्रिय था, तो यह बहुत गहरी व्यक्तिगत क्षति है. इन परिस्थितियों में, जब कभी-कभी आप किसी करीबी के अंतिम संस्कार में नहीं जा सकते हैं, आप एक परिवार के रूप में एक साथ नहीं आ सकते हैं, इसलिए, मृत्यु के बारे में बात करना महत्वपूर्ण है, जब आप किसी करीबी व्यक्ति की मृत्यु की घोषणा करते हैं, तो उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में मदद करने के लिए उनके लिए एक सुरक्षित स्थान बनाएं. याद रखें, जब आप उन्हें किसी की मृत्यु के बारे में बताते हैं, तो संयम और स्थिरता बनाए रखें. लेकिन याद रखें कि ईमानदार होना महत्वपूर्ण है, और धीरे से, शांति से और सम्मान के साथ उन्‍हें पूरी घटना बताएं. इस बारे में बात करना भी महत्वपूर्ण है कि हम एक परिवार के रूप में यह सुनिश्चित करने के लिए क्या करेंगे कि उनका जीवन बड़े पैमाने पर बाधित न हो.

दूसरी स्थिति यह है कि नुकसान व्यक्तिगत नहीं है, लेकिन फिर भी ये हमसे जुड़ा हुआ है. इन मामलों में समुदाय का एक साथ आना जरूरी है. परिवार के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि हर समय कोविड और मौत और तबाही के बारे में बातचीत न हो.

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NDTV: भारत में मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसी चीज है, जिसके बारे में हम कम ही बोलते हैं. COVID की वजह से इसके इर्द-गिर्द बातें शुरू हो गई है, लेकिन बच्चों के लिए अभी भी इस बारे में उतना नहीं बोला जा रहा है. देश में बाल मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के बारे में आप क्या सोचते हैं?

डॉ. अमित सेन: चाइल्‍ड मैंटल हेल्‍थ की बहुत उपेक्षा की जाती है. बाल मानसिक स्वास्थ्य की केयर अक्सर स्कूलों, गैर सरकारी संगठनों द्वारा की जाती है. महामारी ने बच्चों से बहुत कुछ छीन लिया है जैसे स्कूल से बाहर जाना, एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाना, दोस्तों के साथ जन्मदिन मनाना, ये सभी बच्चों का जीवन हैं और उनके विकास में मदद करते हैं. इस पहलू पर किसी ने विचार नहीं किया, लेकिन अब समय आ गया है कि हम इस पर विचार करें. क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है, तो शायद यह पीढ़ी इस तरह की घटनाओं से डरेगी. वे हमारे भविष्य को आगे बढ़ाते हैं, उनके पास मानसिक स्वास्थ्य, बैंडविड्थ, रचनात्मकता और लचीलापन होना चाहिए. उन्‍हें सुरक्षित महसूस करने के लिए चांस लेने में सक्षम होना चाहिए. ताकि वे हमारी दुनिया को बदल सकें. इसे बदलने की सख्त जरूरत है.

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अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने डॉक्टर से सलाह लें. एनडीटीवी इस जानकारी की जिम्मेदारी नहीं लेता है.

अगर आपको मदद की जरूरत है या किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, जो ऐसा करता है, तो कृपया अपने निकटतम मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करें. हेल्पलाइन:

आसरा: 91-9820466726 (24 घंटे)
स्नेहा फाउंडेशन: 91-44-24640050 (सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक उपलब्ध)
मानसिक स्वास्थ्य के लिए वंद्रेवाला फाउंडेशन: 9999666555 (24 घंटे)
iCall: 022-25521111 (सोमवार से शनिवार तक उपलब्ध: सुबह 8:00 बजे से रात 10:00 बजे तक)
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