नई दिल्ली: हाल ही में आयोजित पहले नेशनल अवार्ड ऑफ ट्रांसजेंडर्स 2021 में रवि भटनागर को संगठनात्मक योगदान के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया है. भटनागर वर्तमान में रेकिट के साउथ एशिया- एक्स्टर्नल अफेयर्स एंड पार्टनरशिप, निदेशक पद पर कार्यरत हैं. वह ट्रांसजेंडरों के लिए 90 के दशक से ही काम करते रहे हैं, जब वह कॉलेज में थे और एक पत्रकार और एलजीबीटी अधिकार कार्यकर्ता अशोक राव कवि से मिले थे. कवि ने ही 1994 में मुंबई स्थित एनजीओ हमसफर ट्रस्ट की स्थापना की थी. भटनागर ने कहा,
अशोक राव कवि ने मुझे मुंबई की एक झुग्गी बस्ती में मिलने के लिए बुलाया था. उन्होंने कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि आप दुनिया के दूसरे हिस्से को देखें, जो बहुत उपेक्षित है.’ वहां मैंने पहली बार ट्रांसजेंडर समुदाय को किसी फैशन शो के रैंप पर चलते हुए देखा था. यह बहुत आकर्षक था लेकिन, मैं तब तक अपनी भूमिका को नहीं समझ सका, जब तक कि हम दोनों के बीच गहरी बातचीत शुरू नहीं हुई – जैसे उनके अधिकार, स्वास्थ्य अधिकार, यौन स्वास्थ्य अधिकार, प्रजनन अधिकार, भूमि अधिकार और कई अन्य चीजें. और फिर वहीं से मेरा सफर शुरू हो गया.
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इसके कुछ ही दिन बाद, भटनागर ने गुजरात राज्य एड्स सोसायटी के साथ काम करना शुरू कर दिया, जहां उन्हें LGBTQ+ आबादी के मुद्दों पर 300 से अधिक नागरिक समाज संगठनों को प्रशिक्षित करने का अवसर मिला. इसके बाद उन्होंने ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से मुलाकात की और उन्हें ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित मुद्दों पर राज्य में पहला व्याख्यान देने के लिए गुजरात लेकर आए.
इसके बाद फिर भटनागर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने तब एड्स के इलाज और आवश्यक दवाओं के स्वास्थ्य पहलुओं पर काम करना शुरू कर दिया. भटनागर कहते हैं,
मैंने हमेशा किसी को पीछे नहीं छोड़ने की अवधारणा में विश्वास किया है. स्वास्थ्य सेवा एक मौलिक अधिकार है, न कि विशेषाधिकार. एक को नहीं बल्कि सभी को, यहां तक कि अंतिम छोर तक के लोगों को भी उपलब्ध सेवाओं तक पहुंचने का अवसर मिलना चाहिए.
अपनी यात्रा, काम और ट्रांसजेंडर के लिए काम करने की सोच और पहल के बारे में बात करते हुए NDTV से भटनागर ने कहा,
एक समय था जब ट्रांसजेंडर होने को सिर्फ दो तरह से देखा जाता था, एक बच्चे के जन्म पर बधाई देने वाले लोगों के रूप में और दूसरा सड़कों पर भीख मांगने वाले लोगों के रूप में. उनके लिए कोई अन्य अवसर नहीं थे. इसे बड़ी वर्जनाओं वाले विषय के रूप में देखा जाता था, कोई भी उनके बारे में, उनके अधिकारों के बारे में बोलना भी नहीं चाहता था… पूरे समुदाय में उन्हें ऐसे देखा जाता था जैसे वही अकेले हैं जो एचआईवी रोग फैला रहे हैं. समस्या इतनी बड़ी थी कि एचआईवी जिसे पहले एड्स कहा जाता था, उसे पहले GRID- गे रिलेटेड इम्यून डेफिसिएंसी के रूप में भी जाना जाता था. तो, किसी को तो वास्तविकता में उनके लिए खड़ा होना पड़ा और वास्तविकता को बदलना पड़ा. पिछले कुछ दशकों में एक बहुत बड़ा बदलाव आया है और इस बदलाव के लिए सभी ने अपने-अपने स्तर से प्रयास किए हैं. इस बदलाव की पूरी यात्रा में मैं भी खुद एक बहुत सक्रिय सदस्य के रूप में रहा हूं. मैंने समुदाय में चैंपियनों की पहचान करने, उन्हें प्रशिक्षित करने, उनमें निवेश करने, उन्हें प्रबंधन कौशल आदि पर प्रशिक्षित करने में मदद की है. मैं भाग्यशाली था कि अपने काम के दौरान, ट्रांसजेंडर समुदाय के साथ काम करने वाले 100 से अधिक समुदाय आधारित संगठनों का पोषण करने में सक्षम रहा हूं.
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Reckitt के साथ भटनागर के वर्तमान कार्यकाल ने उन्हें समुदाय के मुद्दों को संबोधित करने के नए अवसर प्रदान किए हैं.
मैं लंदन में रेकिट के ग्लोबल सीईओ लक्ष्मण नरसिम्हन से मिला. हमारी पहली बातचीत इस पर हुई कि वे अपने ब्रांड ड्यूरेक्स के साथ भारत में क्या कर रहे हैं और देश में पूरी एलजीबीटीक्यू+ आबादी के साथ वास्तव में क्या कुछ बड़ा शुरू करने का इरादा है. हम एक साथ आए और तीन वर्षों में भारत में 10 लाख से अधिक LGBTQ लोगों तक पहुंचने के उद्देश्य से हमसफ़र ट्रस्ट के साथ कार्यक्रम शुरू किया. उस कार्यक्रम के माध्यम से, हमने मानसिक स्वास्थ्य, यौन स्वास्थ्य और यौन कल्याण और खाद्य सुरक्षा से जुड़े काम किए. हमने देखा कि ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से क्या किया जा सकता है ताकि अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हो सकें. फोकस इस बात पर है कि हम किसी को पीछे नहीं छोड़ें और अपने प्रयासों और पहलों के माध्यम से समुदाय को और अधिक दृश्यमान बना सकें.
ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों और समान स्वास्थ्य के अवसरों के बारे में मुखर होने के अलावा, भटनागर कई राज्यों में भारत के आकांक्षी जिलों में स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण में विभिन्न कार्यक्रमों को लागू करने में सबसे आगे रहे हैं.
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वह स्वच्छता और WASH (water, sanitation and hygiene) मुहिम के क्षेत्र में भी अग्रणी आवाज रहे हैं. भटनागर ने ऋषिकेश में भारत के पहले वर्ल्ड टॉयलेट कॉलेज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका उद्देश्य हाथ से मैला ढोने वालों को स्वच्छता और सफाई के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के साथ, मुफ्त में प्रशिक्षित करना है; ताकि उनका जीवन बेहतर हो सके.
वर्तमान में, भटनागर उत्तर प्रदेश के वृंदावन में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक उत्कृष्टता केंद्र खोलने के लिए प्रयासरत हैं. उम्मीद है कि यह 2022 की पहली तिमाही में कार्यान्वित हो जाएगा. उनका कहना है कि इससे पहले कि हम कह सकें कि हमने समाज में समानता हासिल कर ली है, अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है.
भारत में 4 लाख से ज्यादा ट्रांसजेंडर हैं, यह एक बड़ी संख्या है. हमें उनकी स्थिति को देखना और उसे 360 डिग्री कोण के हिसाब से उठाना है. हमें उनकी भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक देखभाल करनी होगी. इन लोगों के सामने आने वाली चुनौतियाँ बहुत बड़ी हैं, भावनात्मक आघात बहुत बड़ा है. विभिन्न कार्यक्रमों और पहलों के माध्यम से मैं कुछ न्याय लाने की उम्मीद कर रहा हूं.